SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुभूमिका ११ (३) विदूर :- यह पर्वत वैदूर्य-मणि का उत्पत्ति स्थान था (४।३।८४) । पतंजलि के मत में वैदूर्य मणि की खाने वालवाय पर्वत में थी। वहां से लाकर विदूर के बेगड़ी (रत्नतराश, संस्कृत नाम - वैकटिक) उसे घाट - पहलों पर काटते और बींधते थे । इससे उसका नाम वैदूर्य मणि पड़ गया। संभव है कि दक्षिण का बीदर, विदूर हो । (४) वन पाणिनीय अष्टाध्यायी (८ ।४ । ४ ) में निम्नलिखित प्रमुख वनों का उल्लेख मिलता है : (१) पुरगावण :- गणरत्नमहोदधि ( पृ० ७६ ) के अनुसार 'पुरगा' पाटलिपुत्र की एक यक्षिणी (जातिविशेष) थी । इससे अनुमान किया जाता है कि 'पुरगावण' पाटलिपुत्र के समीप था जो कि उक्त यक्षिणी के नाम से प्रसिद्ध हुआ होगा । (२) मिश्रकावण :- यह नैमिषारण्य के पास मिसरिख वन ज्ञात होता है जो कि अब नीमखार मिसरिख ( सीतापुर से १३ मील दक्षिण ) कहलाता है । ( ३ ) सिध्रकावण :- यह सिध्रका नामक लकड़ियों का वन था । सामविधान ब्राह्मण (३।६।९) में सैन्धकमयी समिधाओं को घी में डुबाकर सहस्र आहुतियों से हवन करने का विधान है। ( ४ ) अग्रेवण :- यह सम्भवत: प्राचीन अग्र जनपद जिसकी राजधानी अग्रोदक ( वर्तमान नाम - अगरोहा ) थी, उसमें अवस्थित वन का नाम था । (५) कोटरावण :- यह लखीमपुर का कोई जंगल ज्ञात होता है, जहां अब कोटरा नामक रियासत है। यहां अधिकतर साखू और शीशम के वृक्ष हैं 1 (६) शारिकावण :- यह वर्तमान (बिहार) का नाम ज्ञात पड़ता है । पाणिनीय अष्टाध्यायी (८।४।५) के अनुसार शरवण, इक्षुवण, प्लक्षवण, आम्रवण, कावण, खदिरवण और पीयूक्षावण प्रसिद्ध थे 1 नदी (५) पाणिनीय अष्टाध्यायी में निम्नलिखित भारतीय नदियों का भी उल्लेख मिलता है :: : (१) सुवास्तु :- यह वैदिक काल की नदी है जिसे आजकल स्वात कहा जाता है (४।२।७७)। इसकी पश्चिमी शाखा गौरी नदी (पंचकोरा ) है । इन दोनों के बीच में उर्दि (उड्डियान ) था जो कि गन्धार देश का एक भाग माना जाता था। यहीं स्वात की घाटी में प्राचीन काल से आज तक एक विशेष प्रकार के कम्बल बुने जाते आये हैं । पाणिनि ने जिनका पाण्डुकम्बल नाम से उल्लेख किया है ( ४ । २ । ११) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003298
Book TitlePaniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSudarshanacharya
PublisherBramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
Publication Year1998
Total Pages624
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy