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________________ रखकर शारीरिक प्रवृत्तियों का त्यागरूप कायोत्सर्ग करता हूँ। सूत्र . परिचय इस सूत्र में कायोत्सर्ग के आगार अर्थात् अपवादों की जो सूची दी गई है उनके अतिरिक्त कायक्रिया के निषेध का यह सूत्र होने से इसे पढ़कर कायोत्सर्ग किया जाता है। अत: यह कायोत्सर्ग सूत्र भी कहलाता है। ___हम शरीर को हमारी आत्मा ही मान लेते हैं, इसे 'मैं' समझ लेते हैं। परन्तु वस्तुत: शरीर यह 'मैं' यानी 'आत्मा' नहीं, यह आत्मा का स्वरूप नहीं। शरीर जड़ है, रूप-रसादिमय है। आत्मा चेतन है, ज्ञान-दर्शन-चारित्रमय है। परन्तु आत्मा को देहाध्यास है, देह के साथ आत्मा का अभेद भ्रम है। उसे देह-ममता लगी हुई है। यह दूर हो तभी आत्मा अध्यात्मभाव में अग्रसर हो सकती है। अत: मुमुक्षु के लिए देहाध्यास दूर करने का एक उपाय है - कायोत्सर्ग करना । इसमें प्रतिज्ञापूर्वक ध्यान में स्थिर रहना होता है और श्वासोच्छवास आदि आगार यानी अपवाद छोड़कर काया को सर्वथा निश्चल करना और मौन धारण करना पड़ता है। इसमें शरीर की किसी प्रकार की संभाल नहीं की जाती । मक्खी, मच्छर आदि का उपद्रव होने पर भी कायोत्सर्ग-ध्यान के समय शरीर के अंगो को बिल्कुल हिलाया नहीं जाता। संक्षेप में इस बात की सतत प्रतीति की जाती है कि मानो शरीर है ही नहीं, केवल आत्मा ही है। कायोत्सर्ग से विषय-कषायों को जीता जा सकता है, उससे समभाव की प्राप्ति होती है। - ३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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