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________________ भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि - ताव ठाणेणं मोणेणं झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि - Jain Education International भंगवतों को नमस्कार करके ( वह कायोत्सर्ग ध्यान) पूरा न करूं तब तक स्थिरता, मौन और ध्यानपूर्वक अपनी काया को छोड़ता हूँ (शरीर की क्रियाएँ छोड़ता हूँ ।) भावार्थ इन क्रियाओं को छोड़कर जैसे कि श्वास लेना, श्वास छोड़ना, खांसी आना, छींक आना, जम्हाई आना, डकार आना, वायु का निकलना होना, चक्कर आना, पित्त के कारण मूर्छा का आना, शरीर का कुछ कंप जैसा हिलना, शरीर में कफ आदि का सूक्ष्म संचार होना, स्थिर की गई दृष्टि का भी निरुपाय अंशत: हिल जाना, इत्यादि काय की प्रवृत्तियाँ । आदि शब्द से उपद्रव, शरीर छेदन, अपने समक्ष हो रही पंचेद्रिय जीव की हत्या, मानवहर्ता चोर अथवा आन्तरिक विद्रोह, या सर्पदंश का भय आदि के कारणों से शरीर को अन्यत्र खिसकाना । इन अपवाद रूप क्रियाओं से अतिरिक्त किसी भी क्रिया का त्याग कर, समूल अथवा आंशिक भंग से विहीन, मेरे द्वारा धारण किया गया, कायोत्सर्ग संपन्न हो । सारांश, इस ध्यान के पूर्ण होने के पश्चात् जब तक 'नमो अरिहंताणं' पद बोलकर, अरिहंतों को नमन करके कायोत्सर्ग न पारूं, तब तक अपने शरीर को स्थैर्य, मौन और ध्यान में ३५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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