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________________ सत्कार, बहुमान देखाव में जिनेन्द्र भगवान् की मूर्ति के प्रति है किन्तु वस्तुतः हमारे मन में यह आदरादि सचमुच जिनेन्द्र भगवान् के प्रति होने का अनुभव में आता है। यह बात भी स्पष्ट है कि स्त्री आदि के असत् राग, आदरादि कम करने के लिए जिन - वीतराग के प्रति बहुमान आदि साधन है । किन्तु जिनेन्द्रदेव की प्रतिमा के अभाव में जिन वीतराग प्रभु का राग, आदर, सत्कार, बहुमान, पूजन आदि कैसे क्रियान्वित किया जायगा ? सारांश यह है कि जीवन जिनपूजा - सत्कारादि से भरपूर होना चाहिए। कम से कम दिन में एक बार तो जिन-पूजा करनी ही चाहिए। ' प्र० - श्रावक ने मंदिर में पूजा कर ली । अतः पूजा का लाभ मिल गया। अब पुनः कौन से लाभ के लिए कायोत्सर्ग करना ? उ०- दूसरे भक्त लोग इन अरिहंत चैत्यों का जो वंदन, पूजन, सत्कार, सम्मान करते हैं, उन वंदनादि के भी अनुमोदना से लाभ लेने के लिए यह कायोत्सर्ग करना है । तब यह प्रतीत होता है कि जीवन में अरिहंतों के वंदनआदि कितने अधिक महत्त्वपूर्ण और आराध्य है । अतएव उनकी अत्यधिक और बिना संतोषी बने हुए आराधना करते रहना चाहिए | श्रावक इस जिनपूजा - सत्कार का हमेशा लोभी बना रहे. कभी भी संतोषी नहीं बने। अरिहंत प्रभु का भक्त प्रभु की मूर्ति का केवल स्वयं भजन करके ही संतुष्ट नहीं होता, प्रत्युत वह इस बात के लिए भी उत्कंठित रहता है कि 'इतर जनों से क्रियमाण जिनमूर्ति के वंदन, पूजन, सत्कार, सम्मान का भी अनुमोदन करके लाभ ले लूं।' इसी हेतु वह कायोत्सर्ग करता है । विशेषत: यह भी है ९६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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