SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ के हेतु अर्थात् साधन का सूचन करते हैं। कायोत्सर्ग के लिए ये श्रद्धादि पाँच साधन आवश्यक हैं। सूत्र - परिचय हम जीवन में मोहवश, लोभवश, अनेक व्यक्तियों के प्रति राग, सत्कार सम्मान, बहुमान करते हैं। फलत: इन राग के बंधनों से बंधे हुए हम संसार में जन्म-जीवन-मरण के शिकार बनते रहते हैं । अत: रागादि के बंधनो से छूटने पर ही जन्म-जीवन-मरण रुक सकते हैं ।इस छूटकारे के लिए वीतराग भगवान् पर अवश्य राग करना चाहिए। वही सरागियों के प्रति राग से हमें मुक्त करने में समर्थ है। किन्तु वीतराग पर राग स्थिर करने के लिए वीतराग के प्रति आदर, पूजा-सत्कार, बहुमान आवश्यक है । यह देखा गया है कि संसार के आदर-सत्कार से राग दृढ़ होता है, व बढ़ता है । तो फिर वीतराग पर राग केन्द्रित करने व बढ़ाने के लिए उनका आदर-सत्कारादि क्यों न किया जाए? इसी हेतु जिन यानी वीतराग की पूजा, भक्ति आदि अनिवार्य है। ___इस समय वीतराग भगवान् यहाँ भरतक्षेत्र में विचरते नहीं। अत: उनकी मूर्ति का दर्शन, वंदन, पूजा, भक्ति, आदर, बहुमान आदि करना वीतराग का ही दर्शन आदि है। देखा गया है कि सरस्वती के चित्र के दर्शन और नमस्कार से सरस्वती के प्रति बहुमान-भावना बढ़ती है, उससे बुद्धि विकसित होती है। महान् देशरक्षकों की तस्वीर देखकर सेना को प्रेरणा प्राप्त होती है तथा वंदना करने से जोश या बल मिलता है। तब इस बात में कोई आश्चर्य नहीं कि जिनप्रतिमा के दर्शन से साक्षात जिन की प्राप्ति का भाव विकसित हो। यह ठीक है कि आदर, ९५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy