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________________ प्रार्थना करता है कि वे मेरे हृदय में जयवंता जयशील रहें। पहली दो गाथाओं में ६ लौकिक सौंदर्य व २ लोकोत्तर सौंदर्य की माँग है। तीसरी गाथा में जन्मोजन्म के लिए जिनचरण-सेवा की माँग है। चौथी गाथा में इस वर्तमान क्षण से लेकर आगामी भव तक के लिए भगवान् की अचिन्त्य शक्ति के प्रभाव से निष्पत्र होनेवाली वस्तुओं में उसे क्या क्या चाहिए, किस किस की उत्कट अभिलाषा है, उसकी एक सूची इस सूत्र में प्रभु के सन्मुख प्रस्तुत करने की निर्दिष्ट है। इस सूत्र में वर्णित प्रार्थना अथवा अभिलाषा को अपेक्षा से सर्वोत्तम कही जा सकती है। यह सूत्र स्पष्टत: चित्रित करता है कि भगवान् से ऐसी शक्ति की ही याचना की जाए जिससे स्व-पर कल्याण हो । जिनभक्ति आदि द्रव्यपूजा व स्तवन स्तोत्रादि भावपूजा करके किसी भौतिक सुख की माँग न करते हुए 'भव वैराग्य' से लेकर भवभव में प्रभुसेवा ही मिलने तक की प्रार्थना की गई है । भगवान् को प्रणाम करने के फल में (१) इस जीवन के हरेक वर्तमान क्षण में आत्मा के भाव- दुःख (कषाय, विषयासक्ति, मनोविकार, दीनता आदि) का नाश, तथा (२) जीवनपर्यन्त कर्मक्षय-कर्मनिर्जरा के कारणरूप १२ प्रकार का तप, (३) जीवन के अन्त समय पर समाधिमरण, तदुपरांत (४) आत्मा में अगले भव में बोधि-लाभ-जैनधर्म की स्वात्मा में स्पर्शना (= परिणमन) इष्ट है। इस प्रार्थना से जीवन सरल, निर्मल, ऊर्ध्वगामी बनता है। श्रद्धा अधिक बलवती होती है। यह विश्वास दृढ़ होता है कि 'अरिहन्त प्रभु हमारी समस्त शुभ धारणाओं को सफल करने में अचिंत्य बल और प्रभाव से युक्त है।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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