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________________ | चरित्रकार का परिचय । इन आचार्य महाराज का समय विक्रम की ८ वीं - ९ वीं सदी होना चाहिये । क्योंकि ग्रंथकार स्वयं ग्रंथ के अन्तिम भाग में यह रचना शके ७०० के जन्म में की ऐसा बताते हैं। विक्रम संवत् ८३५ वे वर्ष में इस ग्रंथ की रचना हुई । इस हिसाब से यह महान ग्रंथ करीब १२०० वर्ष पुराना कहा जा सकता है । इतने प्राचीन शास्त्र की वाणी आज हमें मिल रही है यह हमारा सौभाग्य है । देवी के आदेश से ग्रंथ का महत्वः - जब स्वयं ही देवी ने जिनको ग्रंथ रचना का आदेश दिया होगा तब वें आचार्य महर्षि कितने विद्वान व चारित्रसंपन्न होने चाहिये, इसकी कल्पना की जा सकती है | ग्रंथ स्वयं उनकी बहमुखी प्रतिभा विद्वता व त्याग - वैराग्य की उच्च वृत्ति को उजागर कर रहा है । हमारे कैसे अहोभाग्य कि सैकडों वर्षों के बादभी हमे ऐसे महान आचार्य भगवंत के वचन सुनने को मिल रहे हैं । असली खजाने को पहचानिये : देखिये न ! पूर्व काल का कितना कुछ नष्ट हो गया है ! वहीं आत्मकल्याण का एक ऐसा महान खजाना ग्रंथारूढ होकर हमारे वर्तमान समय तक आ पहुँचा है क्या यह हमारा कम पुण्योदय है ? हमें विरासत में पुरानी दौलत मिल जाय या खोदते हुए गड़ा धन मिल जाय तो महान अहोभाग्य लगता है। ऐसे असली खजाने जैसे महान शास्त्ररल मिले, इसमें अपना प्रबल भाग्योदय आप को महसूस होता है ? कुवलयमाला एक महान खजाने जैसा भव्य ग्रंथ है। शास्त्र के खजाने शास्त्र की विरासन के महत्व का विचार इसलिये करना है कि यह महत्व दिल में बसने के बाद इस अद्भुत तत्वभरे चरित्र ग्रंथ का श्रवण ऐसे उत्कृष्ट भावों से होगा कि - 'ओह ! इसमें मुझे आंतरदृष्टि का महान विकास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003227
Book TitleKuvalayamala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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