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________________ | 212 जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङक महाराजा श्रेणिक तथा श्रीकृष्ण वासुदेव की महारानियों द्वारा विशिष्ट तपश्चर्याओं के आचरण के माध्यम से मुक्तावस्था का वर्णन है तो दूसरी ओर गजसुकुमार और अतिमुक्तक कुमार जैसे श्रमणों का तेजस्वी व्यक्तित्व वर्णित है और तीसरी ओर सेठ सुदर्शन, अर्जुनमाली आदि के आख्यानों का मार्मिक वर्णन है, जो सम्पूर्ण जैन संस्कृति के लिए अनुकरणीय एवं आदर्श है। अत: पर्युषण के पावन पर्व पर स्थानकवासी परम्परा में इस आगम के वाचन की परिपाटी विद्यमान है। श्वेताम्बर-मूर्तिपूजक समाज में कल्पसूत्र के वाचन की परम्परा है। अंगसूत्रों में 'अन्तकृद्दशा' आठवाँ अंग आगम है। यह आठ वर्गों में बंटा हुआ है और पर्युषण के दिन भी आठ ही होते हैं। इसी दृष्टिकोण को सामने रखकर इसके वाचन की परिपाटी पर्युषण के दिनों में हुई होगी। वैसे इसका वाचन किसी भी दिन किया जा सकता है। अंतकददशांग सूत्र की वृत्तियाँ एवं अनुवाद अंतकृद्दशांग सूत्र पर संस्कृत में दो वृत्तियाँ प्राप्त होती हैं- आचार्य अभयदेव और आचार्य घासीलाल जी म.सा. की। छ: हिन्दी-अनुवाद प्राप्त होते हैं। तीन-चार गुजराती अनुवाद भी प्रकाशित हुए हैं। इस तरह इस आगम के करीब तेरह संस्करण प्राप्त होते हैं। एक अंग्रेजी अनुवाद भी प्रकाशित हआ है। सामाजिक एवं सांस्कृतिक वैशिष्ट्य __ अन्तगडदशासूत्र में कांकदी, गुणशील उद्यान, चम्पानगरी, जम्बूद्वीप, द्वारिका, दूतिपलाश चैत्य, पूर्णभद्र चैत्य, भद्दिलपुर, भरतक्षेत्र, राजगृह, रैवतक, विपुलगिरि पर्वत, सहस्राम्रवन उद्यान, साकेत तथा श्रावस्ती के परिचय के साथ ही इसमें ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र और क्षत्रिय जातियों का परिचय भी प्राप्त होता है। ब्राह्मण वर्ण के व्यक्ति विशेष में सोमश्री, सोमा और सोमिल ब्राह्मण का उल्लेख हुआ है। वैश्य वर्ण के व्यक्ति गाथापति में काश्यप, किंकर्मा, कैलाशजी, द्वैपायनऋषि, धृतिधरजी, नागगाथापति, पूर्णभद्र, मंकातिगाथापति, मेघकुमार वास्तक, सुदर्शन सेठ (प्रथम एवं द्वितीय), सुप्रतिष्ठित, सुमनभद्र, सुलसा, हरिचन्दन और क्षेमकगाथापति। शूद्र वर्ग में अर्जुनमाली और उसकी पत्नी बंधुमती तथा क्षत्रिय वर्ग में राजाओं की दृष्टि में अंधकवृष्णि, अलक्षराजा, श्रीकृष्ण वासुदेव, कोणिकराजा, जितशत्रु, प्रद्युम्न, विजयराजा, वासुदेवराजा, बलदेव, समुद्रविजय तथा श्रेणिक राजा, रानियों में काली, कृष्णा, गांधारी, गौरी, चेल्लणा, जाम्बवती, देवकी, धारिणी, नन्दश्रेणिका, नन्दा, नन्दवती, नन्दोत्तरा, पद्मावती, पितृसेनकृष्णा, बलदेवपत्नी भद्रा, मरुतदेवी, मरुतादेवी, महाकाली, भद्रकृष्णा, महामरुता, महासेनकृष्णा, मूलदत्ता, मूलश्री, रामकृष्णा, रूक्मिणी, लक्ष्मणा, वसुदेव-पत्नी, वीरकृष्णा, वैदर्भी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003218
Book TitleJinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2002
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, & Agam
File Size23 MB
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