SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 226
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ | अन्तकृत्दशासूत्र का समीक्षात्मक अध्ययन तपश्चर्या काल- ४९ दिन, १९६ दत्तियाँ 6. अट्ठअट्ठमिया भिक्खुपडिमा तप तपश्चर्या काल- ६४ दिन, २८८ दत्तियाँ 7. नवनवमियाभिक्खुपडिमा तप तपश्चर्याकाल- ८१ दिवस, ४०५ दत्तियाँ 8. दसदसमियाभिक्खुपडिमा तप तपश्चर्याकाल- १०० दिवस, ५५० दत्तियाँ 9. खुओयासव्वतोभद्द पडिमा तप तपश्चर्याकाल- ७५ दिवस, पारणे - २९ 10. महासर्वतोभद्र पडिमा तप तपश्चर्याकाल - १९६ दिवस, पारणे- ४९ 11. भद्रोतर प्रतिमा तपश्चर्याकाल- १७५ दिवस, पारणे - २९ 12. मुक्तावली एक परिपाटी- तपश्चर्या काल- ११ मास २५ दिन, तप के दिन- २८५ दिन, पारणे के दिन - ६० चार परिपाटी- तपश्चर्या काल- ३ वर्ष १० मास, तप के दिन - ३ वर्ष २ मास २४० दिन 13. आयंबिल वर्धमान तपश्चर्याकाल- १४ वर्ष, ३ मास, २० दिन, चार परिपाटी - ११ मास १५ दिन, तप के दिन- ३ वर्ष १० मास । बीच में कोई पारणा नहीं । विशिष्ट तपश्चर्या वर्णन - प्रस्तुत ग्रंथ की विशेषता यह है कि इसमें विशिष्ट तपश्चर्या का वर्णन किया गया है जिसके माध्यम से राज़ा श्रेणिक की रानियों ने मुक्ति प्राप्त की । यहाँ इन तपश्चर्याओं का संक्षिप्त विवरण दर्शाया गया है । पर्युषण में अन्तकृद्दशांग सूत्र की वाचना क्यों ? : दिगम्बर परम्परा में पर्युषण काल में तत्त्वार्थसूत्र के वाचन की परम्परा है । ऐसा कहा जाता है कि राजा श्रेणिक के शासनकाल में चम्पानगरी के पूर्णभद्र उद्यान में सुधर्मा स्वामी ने जम्बूस्वामी को अंतगडदशासूत्र का अध्ययन कराया था। वह काल पर्युषण काल नहीं था और शास्त्रों में भी पर्युषण काल में ही इसकी वाचना का विधान प्राप्त नहीं होता, परन्तु पर्युषण काल में ही इसकी वाचना की परम्परा विद्यमान है। पर्युषण के अवसर पर कब से इसकी वाचना की परंपरा प्रारंभ हुई, यह भी एक शोध का विषय है, परन्तु ऐसा लगता है कि १५वीं शती के पश्चात् अर्थात् लोकाशाह के पश्चात् इसके वाचन की परंपरा प्रारंभ हुई होगी। चूंकि एक ओर इसमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003218
Book TitleJinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2002
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, & Agam
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy