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________________ श्राचार्य देव गुप्तसूरि का जीवन ] [ ओसवाल सं० १४११-१४३३ साहित्य प्रकाश में नहीं आया है केवल आपका ही क्यों पर अभी तो ऐसे बहुत महापुरुषों का जीवन अन्धेरे में ही पड़ा है फिर भी जमाना स्वयं प्रेरणा कर रहा है । अतः जितना मशाला मिला है उसके आधार पर मुनिवर्य श्री विद्याविजयजी महाराज ने आचार्य यशोभद्रसूरि के जीवन के विषय में एक विस्तृत लेख लिख कर जैन श्वे० कान्फ्रेन्स का मासिक पत्र हेरल्ड में मुद्रित करवाया था उसके आधार या कुछ अन्यत्र देखकर मैंने पूज्याचार्य देव का संक्षिप्त से जीवन लिखा है आचार्यश्री के लिये दो प्रमाण उपलब्ध हुए हैं । ( १ ) सोहम कुलरत्न पट्टावली में कवि दीपविजयजी लिखते हैं: १ ॥ २ ॥ ३ ॥ ४ ॥ ५॥ ६ ॥ सांडेरा गच्छ में हुआ जसोभद्र सूरिराय । नवसें हें सतावन समें जन्म वरस गछराय ॥ संवत नवसे हैं अडसठें सूरि पदवी जोय । बदरी सूरी हाजर रहें पुन्य प्रघल जस जोय ॥ संवत नव गण्यतरे नगर मुंडाडा महेिं । सांडेरा नगरें वली किधी प्रतिष्ठा त्याँह ॥ किन्नरसी वली खीम रोषि मुनिराज । जसोभद्र चोथा सहु गुरु भाई सुख साज ॥ हाथी गछ निकल्यो मलधारा तस नाम । किंन्न रसीथी निकल्यो किंन्न रसी गुन खाँन ॥ खीम रसीथीय निपनो कोरं वट बालग गछ जेह । जसोभद्र सांढेर गछ च्यारे गछ सनेह ॥ आबु रोहाई विचे ग्राम पलासी माहें । विप्र पुत्र साथै बहु भणता लडिया त्यांहें ॥ ७ ॥ खडिओ भागो विप्रनो करे प्रतिज्ञा एम । माथानो खडीओ करूं तो ब्राह्मण सहि नेम ॥ ८ ॥ ब्रह्मण जोगी थई विद्या सिखी श्राय । चोमासुं नडुलाईमें हुता सूरि गछराय ॥ ६ ॥ तियां आयो तिहिज जटिल पूरव द्वेष विचार । बाघ सरप बिछी प्रमुख किधा केई प्रकार ।। १० ।। संवत दस दाहोतरें किया चौरासी बाद। वल्लभीपुरथी आणि ऋषभदेव प्रासाद ॥ ११ ॥ ते जोगीपण लावि सिव देहरो मन भाय । जैनमति सिवमति बेहु दोय देहराँ ल्याय ।। हम प्रासाद है नडुलाई सेंहेंर मकार । एहनो वरवरण हैं बहु कथा कोस विस्तार ।। (२) १२ ।। १३ ।। नाड़ोलाई में संवत् १५५७ का शिला लेख है जिसकी नकल । ॥ ६० ॥ श्रीयशोभद्रसूरि गुरुपादुकाभ्यां नमः संवत् १५५७ वर्षे वैशाखमासे । शुक्लपक्षे पष्टयां तिथौ शुक्रवाससि पुनर्वसु ऋक्षप्राप्त चन्द्रयोगे । श्री संडेरगच्छे | कलिकाल गौतमावतार | समस्तभविकजन मनोऽबुज बिबोधनैकदिनकर । सकललब्धिनिधानयुगप्रधान । जितानेकवादीश्वरवृन्द प्रणतानेकनरनायक मुकुटकोटिस्पृष्टपादारविंद । श्रीसूर्यश्व महाप्रसाद | चतुः षष्टि सुरेन्द्र संगीयमान साधु वाद । श्रीपंडेरकीयगण रक्षका वतंस । सुभद्राकुक्षि सरोवर राज [हं] सयशोवीर साधु कुलर नभोमणि सकलचारित्रिचक्रवर्ति चक्रचूडामणि भ० प्रभुश्री यशोभद्रसूरयः । तलट्टे श्री चाहुगानवंशशृंगार । लब्धसमस्तनिरवद्यविद्याजलधिपार श्रीबदरीदेवी गुरुपदप्रसाद स्वविमल कुलप्रबोध नैक प्राप्त परमयशोबाद भ० श्री शालिसूरिः तत्र श्रीसुमतिसूरिः । त० श्रीशांतिसूरिः । त० श्री ईश्वरसूरिः । एवं यथा क्रममनेक गुणमणिगण रोहण गिरीणां महासूरीणां वंशे पुनः श्रीशालिसूरिः । त० श्रीसुमतिसूरिः तत्पट्टालंकारहार भ० श्रीशांतिसूविराणां सपरिकराणां विजयराज्ये ॥ अह श्रीमेदपाटदेशे । श्रीसूर्यवंशीय महाराजाधिराज श्रीशिलादित्यवंशे श्रीगुहिदत्तराउल श्रीवपाक श्रीषुम्माणादि महाराजान्त्रये । राणा हमीर श्रीषेतसीह | श्रीलषमसीह पुत्र श्रीमो कलमृगांक वंशोधोतकार प्रताप मार्तण्डावतार । आसमुद्र महिमण्डलाखण्डल | अतुलमहाबल राणा श्री कुम्भकर्ण पुत्र राणा श्रीरायमल विजयमान प्राज्यराज्ये । तत्पुत्र महाकुमार श्री पृथ्वीराजानुशासनात् । श्रीऊपकेशवंशे राय भण्डारीगोत्रे राउलश्री लाखणपुत्र श्रीमं० दूदवंशे मं० मयूर सुत साहूलहः । मं० नाडोलाई के मन्दिर का शिलालेख Jain Education international For Private & Personal Use Only १४०५ www.ahelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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