SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वि० सं० ४२४-४४० वर्षे ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास ३३-प्राचार्य कक्कसूरि (षष्टम) आचार्यस्तु स कक्कसरिर भवदादित्य नागा न्वये । शोखा चोर लिया धिपोऽथ कुशलो योगासने वन्धने ।। सिद्धोयेन समः स्वरोदय विचारे चापि नासीज्जनः । यान्तं पर्वत मार्बुदं तु जनता संघ सिपेवे अयात् ॥ नाम्नो ऽ स्यैवच सोमशाह निगड़ श्छिन्नः स्वतोगच्छके । एकाचार्य ममुं तु ह्यागतवती देवी सुसच्चायिका ।। सायाता कुकुदा मुने रनुशया च्छारवा कुकुदा पृथक् । प्रत्यक्षा गमनं तु कार्य करणं देव्या स्वयं स्वीकृतम् ॥ चार्य श्रीककसूरीश्वरजी महाराज महन् प्रतिभा शाली सुविहिन शिरोमणि अनेक अलौकीक विद्या एवं लब्धियों के आगर योगासन स्वरोदय के मर्मज्ञ, तेजस्वी, PREITY ओजस्वी, यशःस्वी, वचस्वी इत्यादि अनेन शुभ गुणों से विभूषीत जैनधर्म के एक चमकता हुआ सतारा सदृश आचार्य हुये थे, देवी सच्चायिका के अलावा जया विजया पद्मवती अम्बिका मातुला लक्ष्मी और सरस्वती देवियों और कइ देवता आपके गुणों से आकर्षित होकर दर्शनार्थ एवं सेवा में आये करते थे। आपकी प्रतिभा का प्रभाव जनता पर अच्छा पड़ता था धर्मप्रचार करने में आप सिद्धहस्त थे अनेक मांस मदिरा सेवियों को आपने जैनधर्म में दीक्षित कर महाजन संघ की वृद्धि की थी आपका जीवन जनता के कल्याण के लिये हुआ था जिसकों श्रवण मात्र से ही जीवों का कल्याण होता है। पट्टावली कारों ने श्रापका।जीवन विस्तार से लिखा है पर यहाँ तो संक्षिप्त से ही लिखा जारहा है उस समय शिवपुरी नाम की एक उन्नतशील नगरी थी जिसको राजा जयसेन के लघु पुत्र शिव ने बसाइ थी और प्रारम्भ में वहाँ राजाप्रजा सब जैनधर्मोपासक ही थे उसी नगरी में आदित्यनाग गोत्रीय एवं चोरलिया शाखा के कीर्तिमान मंत्री यशोदित्य नाम का एक प्रसिद्ध पुरुष बसता था आपके गृहदेवी का नाम मैना था आपका गृह जीवन सुख एवं शान्ति से व्यतित होता था आपके घर में विपुल सम्पति थी एवं लक्ष्मी की पूर्ण कृपा थी परन्तु आपके सन्तान न होने से ठानी को कभी कभी भार्तध्यान संताया करता था एक दिन सेठानी ने अपने पतिदेव से अर्ज की कि अपने घर में इतनी सम्पति है पर इसको संभालेगा कौन ? सेठजी ने कहाँ यह तो पूर्व जन्म के किये हुऐ कर्म है इसके लिये मनुष्य क्या कर सकते है। सेठानं - हाँ पूर्व जन्म के फल तो है पर उद्यम करना भी तो मनुष्य का कर्त्तव्य है ? सेठजी-आपही बतलाइये इसका क्या उद्यम किया जाय । ८४८ [ मंत्री यशोदित्य और सेठानी का संवाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy