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________________ ३ तीर्थ माला संग्रह चिठ्ठइ । तासड्डी समणीतो बोहियेहिं गहियातो तेणं तेणं अगणियातो ता ताहिं तं साहुं दढ्ढूणं अक्कं दो क ो ततो रायपुत्तेण साहुणा युद्ध दाऊण मोईयातो, बोधिका अनार्यम्लेच्छाः । (नि. वि.चू. २६८-२)' अर्थात् चूणिका भावार्थ गाथा के नीचे दिये हुए अर्थ में पा चुका है, इसलिए रिण का अर्थ न लिखकर चूर्णिकार के अन्तिम शब्द 'बोधिक' शब्द पर ही थोड़ा सा ऊहापोह करेंगे । __जैन सूत्रों के भाष्यादि में 'बोहिया' यह शब्द बार-बार आया करता है, प्राचीन संस्कृत टीकाकार बोहिय शब्द का संस्कृत 'बोधिक' शब्द बनाकर कहते हैं-बोधिक पश्चिम दिशा के म्लेच्छों को कहते हैं। प्राकृत टीकाकार कहते हैं---मनुष्यों का अपहरण करने वाले म्लेच्छ बोहिय कहलाते हैं, हमारा अनुमान है कि ‘बोधिक' अथवा 'बोहिय' कहलाने वाले लोग बोहीमिया के रहने वाले विदेशी थे, वे यूनानियों के भारत पर के आक्रमण के समय भारत की पश्चिम सरहद पर इधर-उधर पहाड़ी प्रदेशों में फैल गये थे, मौर्यचन्द्र गुप्त के शासन काल में भारत के पश्चिम तथा उत्तर प्रदेशों में घुस कर ये मनुष्यों को पकड़-पकड़ कर ले जाते थे, और विदेशों में पहुँच कर गुलाम खरीददारों के हाथ बेच दिया करते थे । उपर्युक्त हमारा अनुमान ठोक हो तो इसका अर्थ यही हो सकता है कि मथुरा का स्तूप मौर्य राज काल का होना चाहिये। मथुरा का देव निर्मित स्तूप आज भी मथुरा के कंकाली टीले के रूप में भग्न अवस्था में खड़ा है, इसमें से मिली हुई कुषारण कालीन जैन मूर्तियाँ आयाग पट पर जैन साधुओं की मूर्तियों आदि एतिहासिक साधन आज भो मथुरा तथा लखनऊ के सरकारी संग्रहालयों में सुरक्षित हैं। इन पर राजा कनिष्क, हुविष्क, वासुदेव के राज्य काल के लेख भी उत्कीर्ण हैं, इससे ज्ञात होता है कि यह तीर्थ विक्रम की दूसरी शताब्दी तक उक्त दशा में था, उत्तर भारत में विदेशियों के आक्रमणों से खास कर श्वेत हणों के समय में जैनश्रमण तथा जैन-गृहस्थ सामूहिक रूप से दक्षिण भारत की तरफ राजस्थान, मेवाड़, मालवा आदि में चले गये,और उत्तर भारत के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003209
Book TitleTirth Mala Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherParshwawadi Ahor
Publication Year1973
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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