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________________ तीर्थ माला संग्रह इष्टकामय स्तूप को अपने स्थान से न हटाइये इसको मजबूत करना हो तो ऊपर पत्थर का खोल चढवा दो, संघ ने वैसा ही किया आज भी देव निर्मित स्तूप को अदृश्य रूप से देव पूजते हैं, तथा इसकी रक्षा करते हैं, हजारों प्रतिमाओं से युक्त देवलां, रहने के स्थानों, सुन्दर गन्ध कुटी, तथा चेलनिका अंबा अनेक क्षेत्रपाल आदि के नियमां से यह स्तूप सुशोभित है । 'पूर्वोक्त बप्प भट्टि सूरि ने जो कि ग्वालियर के राजा प्राम के धर्म गुरु थे, मथुरा में वि. सं. ८२६ में भगवान् महावीर का बिंब प्रतिष्ठित किया।' मथुरा के देव निर्मित स्तूप की उत्पत्ती का निरूपण शास्त्रीय प्रतीकों तथा मथुरा कल्प के आधार से ऊपर दिया गया है, कल्पोक्त वर्णन अतिशयोक्ति पूर्ण हो सकता है, परन्तु एक बात तो निश्चित है कि यह स्तप अति प्राचीन है, और भारत में विदेशियों के आने के समय यह स्तूप जैनों का एक महिमास्पद तीर्थ बना हुआ था, वर्ष के अमुक समय में यहाँ स्नान महोत्सव होता था। और उस प्रसंग पर भारतवर्ष के कोने-कोने से तीर्थ यात्रिक यहां एकत्र होते थे, ऐसा प्राचीन साहित्य के उल्लेखों से सिद्ध होता है । इस बात के समर्थन में निशीथभाष्य की एक गाथा तथा उसको चूणि का उद्धरण नीचे देते हैं-- ___ 'थूभ मह सढि समणी बोहिय हरणंच निवसुयातावे । मग्गेणय अक्कंदे कयंमि युद्धेण मोएत्ति ।। अर्थात्-'मथुरा के स्तूप महोत्सव पर जैन श्राविकाएं तथा जैन साध्वियें जा रही थीं। मार्ग में बोधिक लोग उन्हें घेर कर अपने साथ ले चले, आगे जाते मार्ग के निकट आतापना करते हुए, एक राजपुत्र प्रवजित जैन मुनि को देखा । उन्हें देखते ही यात्रार्थियों ने आक्रन्दन (शोर) किया, जिसे सुनकर मुनि उनकी तरफ आये, और बोधिकों से युद्ध कर श्राविकाओं को उनके पंजे से छुडाया।' उक्त गाथा को विशेष चूणि नीचे लिखे अनुसार है-- 'महुराए नयरीए थूभो देव निम्मिश्रो तस्स महिमा निमित्तं सड्डी तो-समणीहिं समं निग्गयातो रायपुत्तो तत्त्व अदूरे पायावतो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003209
Book TitleTirth Mala Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherParshwawadi Ahor
Publication Year1973
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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