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________________ तू धैर्य रख''मेरा एक काम करना है।' वेगवती मलया की ओर देखती रही। मलया बोली-'युवराज महाबल यहां आएं तो उन्हें कहना कि मलया ने नमस्कार कहा है और भवबंधन की गांठ को कर्मरूपी चाकू ने काट डाला है, अफसोस मत करना। - उत्तर में वेगवती रो पड़ी। - मलया ने वेगवती को शांत किया। वेगवती बोली--'राजकुमारीजी ! आपने अभी तक कुछ भी नहीं खाया-पीया है । मैं अभी महाप्रतिहार की आज्ञा लेकर भोजन...' 'अरे पगली ! आज तो मैंने अन्न-जल का परित्याग किया है। जिसकी मृत्यु निकट हो उसे सभी रसों का त्याग कर देना चाहिए 'अब तो मेरे भवभव का पाथेय एकमात्र नमस्कार महामन्त्र है ''यही मेरे जीवन का अमृत है... यदि दैवयोग से मैं बच गई तो अवश्य अन्न-जल लूंगी, अन्यथा यावज्जीवन कभी ग्रहण नहीं करूंगी।' 'मलया !'. 'वेगवती ! तू मेरी दासी नहीं, धायमाता है । हृदय में वेदना को संजोए मत रखना। कर्म के विपाक को रोते-रोते सहने की अपेक्षा हंसते-हंसते सहना श्रेयस्कर होता है।' वेगवती ने मलयासंदरी को छाती से लगा लिया । मलयासुंदरी ने नमस्कार महामन्त्र की आराधना प्रारंभ कर दी। ८८ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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