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________________ भौगोलिक परिचय : परिशिष्ट १ ३७६ भूमि होने से भी मथुरा का महत्त्व रहा है। मथुरा कई तीर्थंकरों की विहार भूमि, विविध मुनियों की तपोभूमि, एवं अनेक महापुरुषों की निर्वाण भूमि है। _ जैनागमों की प्रसिद्ध तीन वाचनाओं में से एक वाचना मथुरा में ही सम्पन्न हुई थी जो माथुरीवाचना कहलाती है। मथुरा के कंकाली टीला की खुदाई में जैनपरम्परा से संबंध रखने वाली अनेक प्रकार की महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध हुई है, जिससे सिद्ध होता है कि मथुरा के साथ जैन-इतिहास का गहरा संबंध रहा है। __ बौद्धधर्म के सर्वास्तिवादी सम्प्रदाय की मान्यता है कि इस भूतल के मानवसमाज ने सर्वसम्मति से अपना जो राजा निर्वाचित किया था, वह 'महासम्मत' कहलाता था। उसने मथुरा के निकटवर्ती भूभाग में अपना प्रथम राज्य स्थापित किया था, इसीलिए 'विनय पिटक' में मथुरा को इस भू-तल का आदिराज्य कहा गया है । १०५ _ 'अंगुत्तरनिकाय' में १६ महाजनपदों का नामोल्लेख है। उनमें पहला नाम शूरसेन जनपद का है। हुएनसांग ने तत्कालीन मथुरा राज्य का क्षेत्रफल ५००० ली (८३३ मील के लगभग) बताया है। उसकी सीमाओं के सम्बन्ध में श्री कनिंघम का अनुमान है कि वह पश्चिम में भरतपुर और धौलपुर तक, पूर्व में जिझौती (प्राचीन बुन्देलखण्ड राज्य) तक तथा दक्षिण में ग्वालियर तक होगी। इस प्रकार उस समय भी मथुरा एक बड़ा राज्य रहा होगा । १७२ वैदिक परम्परा में सांस्कृतिक और आध्यात्मिक गौरव की आधार-शिलाए सात महापुरियां मानी गई हैं १ अयोध्या, २ मथुरा, ३ माया, ४ काशी ५ कांची ६ अवंतिका और ७ द्वारिका । १७३ पद्म १७१. उत्तर प्रदेश में बौद्ध धर्म का विकास पृ० ३० १७२. ऐंट श्येंट ज्योगरफी आफ इण्डिया पृ० ४२७-४२८ १७३. अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवंतिका । पुरी द्वारवती चैव सप्तैता मोक्षदायिका ।। ---गरुडपुराण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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