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________________ ३७८ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण जिले में आये हुए कायमगंज से उत्तर पश्चिम में छह मील के ऊपर कंपिला हो, ऐसा लगता है ।१६° उपरोक्त पद्य में पटियारी का उल्लेख हुआ है । कंपिला से उत्तर पश्चिम में १६ माइल पर पटियाली गांव है। महाभारत में गंगा के किनारे अवस्थित मांकदी के पास द्रपद का नगर बताया गया है। हथ्थकप्प : यह ग्राम शत्रु जय के सन्निकट होना चाहिए, क्योंकि पाण्डवों ने हथ्थकप्प में सुना कि भगवान् अरिष्टनेमि उज्जयंत पर्वत पर निर्वाण प्राप्त हुए हैं। यह सुन पाण्डव हथ्थकप्प से निकल शत्र जय की तरफ गये । इस समय सौराष्ट्र में तलाजा के पास में हाथप नाम का गांव है, जो शत्र जय से विशेष दूर नहीं है । यह हाथप ही हथ्थकप्प होना चाहिए। भाषा व नाम की दृष्टि से भी अधिक साम्य है। गुप्तवंशीय प्रथम धरसेन के वलभी के दानपत्र में (ई० स० ५८८) हस्तवत्र इलाके का उल्लेख हुआ है। इस शिलालेख के अनुवाद में हस्त वप्र को वर्तमान का हाथप माना गया है। १६८ हथ्थकप्प और हस्तवप्र इन दोनों शब्दों का अप्रभ्रंश रूप हाथप हो सकता है। देवविजय जी ने पांडव चरित्र में हत्थिकप्प के स्थान पर हस्तिकल्प दिया है और उसे रैवतक से बारह योजन दूर बताया है। मथुरा: जिनसेनाचार्यकृत महापुराण में लिखा है कि भगवान् ऋषभदेव के आदेश से इन्द्र ने इस भूतल पर जिन ५२ देशों का निर्माण किया था, उनमें एक शूरसेन देश भी था, जिसकी राजधानी मथुरा थी। १६९ ___सातवें तीर्थकर सुपार्श्वनाथ और तेईसवें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ का विहार भी मथुरा में हुआ था ।१७ तीर्थंकर महावीर भी मथुरा पधारे थे । अन्तिम केवली जम्बूस्वामी के तप और निर्वाण की १६७. भगवान् महावीर नी धर्मकथाओ-टिप्पण पृ० २३६ १६८. इण्डियन ऐन्टीकवेरी वो० ६, पा० ६ १६६. महापुराण पर्व १६, श्लोक १५५ १७०. विविध तीर्थकल्प में मथुरापुरी कल्प--जिनप्रभसूरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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