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________________ भौगोलिक परिचय : परिशिष्ट १ मगध ईसा के पूर्व छठी शताब्दी में जैन और बौद्ध श्रमणों को प्रवृत्तियों का मुख्य केन्द्र था। ईस्वी पूर्व चतुर्थ शताब्दी से पांचवीं शताब्दी तक यह कला-कौशल आदि की दृष्टि से अत्यधिक समद्ध था। नीतिनिपुण चाणक्य ने अर्थशास्त्र की रचना व वात्स्यायन ने कामसूत्र का निर्माण भी मगध में ही किया था। वहां के कुशलशासकों ने स्थान-स्थान पर मार्ग निर्माण कराया था और जावा, बालि प्रभति द्वीपों में जहाजों के बेड़े भेजकर इन द्वीपों को बसाया था।११६ जैन और बौद्ध ग्रन्थों में मगध की परिगणना सोलह जनपदों में की गई है ।११७ मगध, प्रभास और वरदाम ये भारत के प्रमुख स्थल थे जो पूर्व, पश्चिम और दक्षिण में अवस्थित थे। भरत चक्रवर्ती का राज्याभिषेक वहाँ के जल से किया गया था । ११८ अन्य देशवासियों की अपेक्षा मगधवासियों को अधिक बुद्धिमान माना गया है । वे संकेत मात्र से समझ लेते थे, जबकि कौशलवासी उसे देखकर, पाँचालवासी उसे आधा सूनकर और दक्षिण देशवासी पूरा सूनकर ही उसे समझ पाते थे।५५ ___साम्प्रदायिक विद्वेष से प्रेरित होकर ब्राह्मणों ने मगध को 'पाप भूमि' कहा है, वहां जाने का भी उन्होंने निषेध किया है। प्राचीन तीर्थमाला में अठारहवीं सदी के किसी जैन यात्री ने प्रस्तुत मान्यता ११६. देखिए जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज पृ० ४६० ११७. अंग, बंग, मलय, मालवय, अच्छ, वच्छ, कोच्छ, पाढ, लाढ, वज्जि, मोलि (मल्ल) कासी, कोसल, अवाह, संभुत्तर । -व्याख्याप्रज्ञप्ति १५ तुलना कीजिए-अंग, मगध, कासी, कोसल, वज्जि, मल्ल, चेति, वंश, कुरु, पंचाल, मच्छ, सूरसेन, अस्सक, अवंति, गंधार और कंबोज । -अंगुत्तरनिकाय ११३, पृ० १९७ ११८. (क) स्थानाङ्ग ३।१४२ (ख) आवश्यक चूर्णी पृ० १८६ (ग) आवश्यकनियुक्ति भाष्य दीपिका ११० पृ० ६३ अ० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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