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________________ भौगोलिक परिचय : परिशिष्ट १ ३६५ समय अंग मगध का ही एक हिस्सा था । राजा श्रेणिक अंग और मगध दोनों का ही स्वामी था । त्रिपिटक साहित्य में अंग और मगध को साथ रखकर ‘अंग मगधा' द्वन्द्व समास के रूप में प्रयुक्त हुआ है । चम्पेय जातक के अभिमतानुसार चम्पानदी अंग और मगध दोनों का विभाजन करती थी, जिसके पूर्व और पश्चिम में दोनों जनपद बसे हुए थे । अंग जनपद की पूर्वी सीमा राजप्रासादों की पहाड़ियां, उत्तरी सीमा कौसी नदी और दक्षिण में उसका समुद्र तक विस्तार था । पार्जिटर ने पूर्णिया जिले के पश्चिमी भाग को भी अंग जनपद के अन्तर्गत माना है । १४ 1 'सुमंगल विलासिनी' में बताया है कि अंग जनपद में अंग (अंगा ) नामक लोग रहा करते थे, अतः उनके नाम पर प्रस्तुत जनपद का नाम अंग हुआ । अंग लोगों ने अपने शारीरिक सौन्दर्य के कारण यह नाम पाया था । फिर यह नाम प्रदेश विशेष के लिए रूढ़ हो गया । " महाभारत के अनुसार अंग नामक राजा के नाम पर जनपद का नाम अंग पड़ा । ६ रामायण के मन्तव्यानुसार महादेव के क्रोध से भयभीत होकर मदन वहां पर भागकर आया और वह अपने अंग को छोड़कर वहां अनंग हुआ था । मदन के अंग का त्याग होने से यह प्रदेश अंग कहलाया । ७ १. ( क ) औपपातिक सूत्र १ (ख) ज्ञातृधर्म कथा ८, पृ० (ग) उत्तराध्ययन सूत्र २१, २ ६२. जातक, पालिटैक्स - सोसायटी, जिल्द ४, पृ० ४५४, जिल्द ५ वीं पृ० ३१६, जिल्द छुट्टी पृ० २७१ ६३. ( क ) दीघनिकाय ३१५, (ख) मज्झिमनिकाय २।३।७ ( ग ) थेरीगाथा - बम्बई विश्वविद्यालय संस्करण गा० ११० ४. जर्नल ऑव एशियाटिक सोसायटी ऑव बंगाल, सन् १८६७, पृ० ६५ ६५. सुमंगलविलासिनी, प्रथम जिल्द पृ० ७२६ ६६. महाभारत - गीताप्रेस संस्करण १।१०४ । ५३-५४ ६७. रामायण - - गीताप्रेस संस्करण १।२३।१४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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