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________________ ३६४ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण पास समुद्र न होने का हमें एक ओर आगमिक प्रमाण मिलता है। जब श्रीकृष्ण को यह पता चलता है कि लवण समुद्र के पार धातकी खण्ड में अमरकंका के नरेश पद्मनाभ द्वारा द्रौपदो का अपहरण कर लिया गया है तब वह पांचों पाण्डवों से कहते हैं कि तुम लोग अपनी सेना सहित पूर्व-वेताली पर मेरी प्रतीक्षा करो, मैं अपनी सेना सहित तुमसे वहां मिलूगा । पूर्व निश्चयानुसार श्रीकृष्ण पाण्डवों से वहीं पर पूर्व वेताली में मिलते हैं और वहां से लवणसमुद्र पार कर अमरकंका पहुँचते हैं । यदि द्वारका समुद्र किनारे ही होती, तो उन्हें द्वारका छोड़ पूर्व-वेताली से समुद्र पार करने की कोई जरूरत नहीं होती।" जैन, बौद्ध और वैदिक साहित्य में अनेक स्थलों पर द्वारका के सन्निकट समुद्र का उल्लेख हुआ है जिसका वर्णन हम पूर्व कर चुके हैं ऐसी स्थिति में मुनिश्री का प्रस्तुत कथन युक्ति-युक्त प्रतीत नहीं होता, रहा प्रश्न अमरकंका गमन का, संभव है इसके पीछे कुछ अन्य कारण रहा हुआ हो । इस कारण से ही द्वारका को समुद्र के किनारे नहीं मानना तर्क संगत नहीं है । अङ्ग: ___ अंग एक प्राचीन जनपद था । भागलपुर से मुगेर तक फैले हुए भूभाग का नाम अंग देश है। प्रस्तुत देश की राजधानी चम्पापुरी थी जो भागलपुर से पश्चिम में दो मील पर अवस्थित थी । कनिंघम ने भागलपुर से २४ मील दूर पर पत्थरघाटा पहाड़ी के सन्निकट चम्पानगर या चम्पापुरी की अवस्थिति मानी है। यह गंगातट पर स्थित है। प्राचीन युग में चम्पा अत्यधिक सुन्दर और समृद्ध नगर था । वह व्यापार का केन्द्र था और दूर-दूर से व्यापारी व्यापारार्थ वहां पर आया करते थे। जातकों से ज्ञात होता है कि बुद्ध के पूर्व राज्य सत्ता के लिए मगध और अंग में संघर्ष होता था ।१२ बुद्ध के ६०. (क) एन्शियन्ट ज्योग्रफी ऑव इण्डिया पृ० ५४६ (ख) नन्दलाल दे-ज्योग्रफीकल डिक्शनरी ऑव एन्शियन्ट एण्ड मेडीवल इण्डिया पृ० ७ (ग) स्मिथ-अर्ली हिस्ट्री ऑव इण्डिया, चतुर्थ संस्करण पृ० ३’ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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