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________________ ३६० भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण कच्छ की खाड़ी में एक छोटा-सा टापू है। वहां एक दूसरी द्वारका है जो 'बेट द्वारका' कही जाती है। माना जाता है कि यहां पर श्रीकृष्ण परिभ्रमणार्थ आते थे। द्वारका और बेट द्वारका दोनों ही स्थलों में राधा, रुक्मिणी, सत्यभामा आदि के मन्दिर हैं ।६८ (६) बॉम्बे गेजेटीअर में कितने ही विद्वानों ने द्वारका की अवस्थिति पंजाब में मानने की संभावना की है।६९ (७) डॉ० अनन्तसदाशिव अल्तेकर ने लिखा है-प्राचीन द्वारका समुद्र में डूब गई, अतः द्वारका की अवस्थिति का निर्णय करना संशयास्पद है।" (८) पुराणों के अध्ययन से यह भी ज्ञात होता है कि महाराजा रैवत ने समुद्र के मध्य कुशस्थली नगरी बसाई थी। वह आनर्त जनपद में थी। वही कूशस्थली श्रीकृष्ण के समय द्वारका या 'द्वारवती' के नाम से पहचानी जाने लगी। () ज्ञाताधर्मकथा व अन्तगडदसाओ के अनुसार द्वारका सौराष्ट्र में थी ।२ वह पूर्व-पश्चिम में बारह योजन लम्बी, और उत्तरदक्षिण में नव योजन विस्तीर्ण थी। वह स्वयं कुबेर द्वारा निर्मित, सोने के प्राकार वाली थी, जिस पर पांच वर्गों के नाना मणियों से सुसज्जित कपिशीर्षक-- कंगूरे थे। वह बड़ी सुरम्य, अलकापूरी -तुल्य और प्रत्यक्ष देवलोक- सदृश थी। वह प्रासादिक, दर्शनीय अभिरूप तथा प्रतिरूप थी। उसके उत्तर पूर्व में रैवतक नामक पर्वत था। उसके पास समस्त ऋतुओं में फल-फूलों से लदा रहने वाला नन्दनवन नामक सुरम्य उद्यान था। उस उद्यान में सुरप्रिय यक्षायतन था। उस द्वारका में श्रीकृष्ण वासुदेव अपने सम्पूर्ण राजपरिवार के साथ रहते थे। 3 ६६. बॉम्बे गेजेटीअर भाग १ पार्ट १, पृ० ११ का टिप्पण १ ७०. इण्डियन एन्टिक्वेरी, सन् १६२५, सप्लिमेण्ट पृ० २५ ७१. वायुपुराण ६।२७ ७२. (क) ज्ञाताधर्म कथा १।१६, सूत्र १२३ (ख) अन्तगडदशाओ ५३. ज्ञाताधर्म कथा ११५, सूत्र ५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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