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________________ जीवन की सांध्य-वेला बलराम ने सुझाव दिया-पाण्डव हमारे हादिक स्नेही हैं । हमने समय समय पर उनके उपकार भी किये हैं, अतः वहीं पर चलना उचित होगा। कृष्ण-भाई ! तुम्हारा कहना सत्य है पर पहले मैंने उनको निष्कासित किया था, अब वहां कैसे चला जाय ? बलभद्र-कृष्ण ! तुम किसी भी प्रकार का विचार न करो, वे हमारा हार्दिक स्वागत करेंगे। बलभद्र की बात स्वीकार कर श्रीकृष्ण बलराम के साथ द्वारिका से पाण्ड मथुरा जाने के लिए नैऋत्य दिशा की ओर चल दिये । ९ ।। जिस समय द्वारिका नगरी जल रही थी, उस समय बलराम का पुत्र कुब्जवारक, जो चरम शरीरी था, महल की छत पर खड़ा होकर कहने लगा-'इस समय मैं भगवान् अरिष्टनेमि का व्रतधारी शिष्य हूँ। मुझे प्रभु ने चरम शरीरी और मोक्षगामी कहा है । यदि भगवान् के वचन सत्य हैं तो मैं इस अग्नि में किस प्रकार जल सकता हूँ ? उसी समय जूभक देव उसे उठाकर भगवान् अरिष्टनेमि के समक्ष शरण में ले गये । वहाँ पर उसने दीक्षा ली।२० छह महीने तक द्वारिका जलती रही। कहा-जाता है कि उसमें साठ कुल कोटि, और बहत्तर कुल कोटि यादव जलकर भस्म होगए। उसके बाद समुद्र में तूफान आया और द्वारिका उसमें डब गई।२१ १८. यथा नालं पुरी त्रातु तथा न द्रष्टुमुत्सहे। आर्य ब्र हि क्व गच्छावो विरुद्ध सर्वमावयोः ।। -त्रिषष्टि० ८।११।६५ १६. अनेकधा सत्कृतास्ते कृतज्ञाः पाण्डुसूनवः । पूजामेव करिष्यन्ति भ्रातविमृशमान्यथा । इत्युक्तः सीरिणा शाी प्राचलत्पूर्वदक्षिणाम् । उद्दिश्य पांडवपुरी तां पाण्डुमथुराभिधाम् ॥ -त्रिषष्टि० ८।११।१६-१०० २०. त्रिषष्टि० ८।११।१०१-१०४ २१. षष्टि सप्ततिश्चापि निर्दग्धाः कुलकोटयः । षण्मास्येवं पुरी दग्धा प्लाविता चाब्धिना ततः ॥ -त्रिषष्टि० ८।११।१०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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