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________________ द्वारिका में श्रीकृष्ण २३७ मशी ने “रुक्मिणी आने शैव्या विशे नोंध"४५ में कुछ चर्चाएं की हैं। जिज्ञासु पाठकों को वहां देखना चाहिए। जैन, बौद्ध और वैदिक साहित्य का पर्यवेक्षण करने से ऐसा स्पष्ट ज्ञात होता है कि प्राचीन युग में बहुविवाह की प्रथाए थीं अतः श्रीकृष्ण के आठ से भी अधिक पत्नियां हों उसमें बाधा जैसी बात नहीं है । हमारी दृष्टि से भी यही बात उचित लगती है। राधा : आगम व आगमेतर जैन साहित्य में राधा का कहीं भी उल्लेख नहीं है। राधा कौन थी और उसका श्रीकृष्ण के साथ क्या सम्बन्ध था, आदि प्रश्नों के सम्बन्ध में किञ्चित् मात्र भी चर्चा नहीं है। वैदिक विद्वानों ने राधा के सम्बन्ध में गंभीर अन्वेषणा की है। राधा भक्त विद्वानों की मान्यता है कि राधा का नाम बहुत पुराना है। वेदों से लेकर अर्वाचीन साहित्य तक में राधा का उल्लेख है। उनकी शोध का संक्षिप्त सारांश इस प्रकार है ऋग्वेद में राधा का नाम मिलता है।४६ सामवेद और अथर्ववेद४८ में भी राधा शब्द आया है । वृहद्ब्रह्म संहिता में राधा और कृष्ण में कोई अन्तर नहीं माना गया है। जो कृष्ण है सोई राधा है जो राधा है सोई कृष्ण है । सनत्कुमार संहिता में भी कृष्ण और राधा में अभिन्नता स्थापित की गई है ।५० कृष्णोपनिषद्५१ व कठवल्ली५२ उपनिषद्कार ने राधा के सौन्दर्य का वर्णन किया है। ४५. कृष्णावतार भाग--२, परिशिष्ट पृ० ५६१-५६४ ४६. (क) ऋग्वेद १।३०१५ (ख) ऋग्वेद ३१५१।१० ४७. सामवेद १६५, ७३७ ४८. अथर्ववेद २०१४५२ ४६. यः कृष्णः सापि राधा या राधा कृष्ण एव सः । ५०. राधाकृष्णेति संज्ञाढ्यं राधिकारूप मंगलम् । ५१. वामाङ्गसहिता देवी राधा वृन्दावनेश्वरी । सुन्दरी नागरी गौरी, कृष्णहृद्भुङ्गमंजरी ॥ ५२. “यदापश्यः पश्यन्ति रुक्मवर्ण कर्तारमीशं पुरुषं ब्रह्मयोनिम्" । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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