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________________ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण श्रीकृष्ण ने भी कुछ दूर जाकर पांचजन्य शंख को और बलराम ने सुघोषा शंख को फूंका। उसके गंभीर रव को सुनकर सभी लोग चकित हो गये । रुक्मि और शिशुपाल विराट् सेना लेकर श्रीकृष्ण के पीछे दौड़े । अपने पीछे सेना आती देखकर रुक्मिणी घबराई | वह बोलीमेरा भाई और शिशुपाल गजब के बहादुर हैं और अन्य बहुत से वीर भी उनके साथ आ रहे हैं । अब क्या होगा ? २३० रुक्मिणी को आश्वासन देने के लिए श्रीकृष्ण ने एक ही बाण से कमल पत्रों की तरह ताड वृक्षों की पंक्ति का छेदन कर दिया और अपनी मुद्रिका में रहे हुए हीरे को मसूर की दाल की तरह चूर दिया | श्रीकृष्ण की अद्भुत वीरता देखकर वह बहुत ही सन्तुष्ट हुई। श्रीकृष्ण ने बलराम से कहा - इस वधू को आप आगे ले जावें और मैं पीछे आने वाले रुक्मि आदि को संभाल लेता हूँ ।" बलराम ने कहा कृष्ण ! तुम जाओ। मैं अकेला ही रुक्मि आदि को यमलोक पहुँचा दूंगा । - यह सुनकर रुक्मिणी के हृदय को गहरा आघात लगा । उसने प्रार्थना की कि मेरे भाई का वध न करें । श्रीकृष्ण रुक्मिणी को लेकर आगे चल दिये । " 1 ૮ 5 पीछे रहे बलराम ने शत्रु के सैन्य पर मुसल उठाकर मंथनकर दिया और हल से सभी शत्रुओं को भगा दिया । युद्ध भूमि में केवल रुक्मि रहा । बलराम ने बाणों की ऐसी वर्षा की कि उसका रथ (ग) वसुदेव हिण्डी (घ) प्रद्य ुम्न चरित्र सर्ग ३-४ १७. ( क ) त्रिषष्टि०८।६।४०-४८ (ख) हरिवंशपुराण ४२७८-८६, पृ० ५१० १८. नोट - हरिवंश पुराण में बलराम को छोड़कर कृष्ण जाते नहीं है किन्तु वहीं पर रहकर युद्ध करते हैं— देखो — हरिवंश ० ४२।६०-६५, साथ ही शिशुपाल के वध का वर्णन किया है, पर वह त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में नहीं है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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