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________________ द्वारिका में श्रीकृष्ण २२६ रुक्मिणी की धात्री ने भी एक दिन प्रसंगवश रुक्मिणी से कहाजब तू बहुत ही छोटी थी उस समय अतिमुक्त मुनि, जो लब्धिधारी थे, यहां आये थे। हमारे पूछने पर उन्होंने कहा था कि यह श्रीकृष्ण की पट्टरानी होगी । पर आज तुम्हारे भाई ने कृष्ण के दूत का अपमान किया है और दूत को लौटा दिया है ? रुक्मिणी ने पूछा---क्या कभी मुनि की भविष्यवाणो मिथ्या हुई है ? धात्री ने कहा - "नहीं !" रुक्मिणी की अभिलाषा जानकर उसकी धात्री (फूइबा) ने एक गुप्त दूत श्रीकृष्ण के पास भिजवाया। पत्र में श्रीकृष्ण को लिखा 'माघ मास की शुक्ल अष्टमी को नाग पूजा के बहाने मैं रुक्मिणी को लेकर नगर के बाहर उद्यान में जाऊंगी। हे कृष्ण ! तुम्हें रुक्मिणी का प्रयोजन हो तो उस समय तुम वहां पर आ जाना, अन्यथा वह तो शिशुपाल के फंदे में फंस जाएगी।१५ दूत ने वह संदेश श्रीकृष्ण को दिया। इधर रुक्मिणी के भाई ने रुक्मिणी से विवाह करने के लिए शिशुपाल को आमंत्रित किया। शिशुपाल सेना सहित वहां आ पहुँचा। श्रीकृष्ण और बलभद्र भी अपने-अपने रथ में बैठकर पूर्व निश्चित स्थान पर आये। धात्री सखियों के साथ रुक्मिणी को लेकर नाग पूजा के बहाने उद्यान में आयी । श्रीकृष्ण ने सर्वप्रथम धात्री का अभिवादन किया। फिर श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी से अपने रथ में बैठने को कहा । धात्री के आदेश से वह श्रीकृष्ण के रथ में बैठ गई। जब श्रीकृष्ण कुछ दूर निकल गये तब धात्री व दासियाँ जोर से चिल्लाई कि रुक्मिणी को हरकर श्रीकृष्ण ले गये हैं। पकड़ो; रुक्मिणी को बचाओ।१६ १४. (क) त्रिषष्टि० ८।६।२४ (ख) हरिवंशपुराण ४२।४६-५६ १५. (क) त्रिषष्टि ० ८।६।२८-३० (ख) हरिवंशपुराण ४२।५७-६४ (ग) प्रद्युम्नचरित्र-महाकाव्यम् सर्ग २, श्लोक ७३ १६. (क) त्रिषष्टि० ८।६।३१-३६ (ख) हरिवंशपुराण ४२।६५-७७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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