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________________ गोकुल और मथुरा में श्रीकृष्ण २१३ उसके साथ क्रीडा करते रहे । कालिया नाग के उपद्रव को उन्होंने शान्त किया और स्नान करके मथुरा की ओर चले । हरिवंशपुराण के अनुसार कृष्ण का अन्त करने की भावना से कंस ने कमल लाने के लिए समस्त गोपों के समूह को यमुना के उस ह्रद के सन्मुख भेजा जो प्राणियों के लिए अत्यन्त दुर्गम था, और जहां विषम साँप लहलहाते रहते थे । अपनी भुजाओं के बल से सुशोभित कृष्ण अनायास ही उस ह्रद में घुस गये और कालिय नामक नाग का, जो कुपित होकर सामने आया था, महाभयंकर, फरणपर स्थित मणियों की किरणों के समूह अग्नि के स्फुलिंगों की शोभा को प्रकट रहा था, तथा अत्यन्त काला था, उन्होंने शीघ्र ही मर्दन कर डाला । 3 नदी के किनारे पर गोप बाल जय जय कार करने लगे । श्रीकृष्ण कमल को तोड़कर वायु के समान शीघ्र ही तट पर आगए और वे कमल कंस के सामने उपस्थित किए गए । उन्हें देखकर कंस घबरा गया । उसने आज्ञा दी कि नन्द गोप के पुत्र सहित समस्त गोप अविलम्ब मल्लयुद्ध के लिए तैयार हो जावें । ४° वसुदेव ने कंस की दुष्ट भावना समझ ली थी । उन्होंने अपने बड़े भाइयों को शीघ्र ही मथुरा बुलाने का सन्देश भेज दिया, और वे सभी वहां आगए । ४१ कंसस्तदानीं । 1 ३८. त्रिषष्टि० ८।५।२६२-२६५ ३६. विदितहरिसमीहश्चापि पुनरपि तदपायोपायधीपवर्गम् ॥ कमलहरणहेतोदु गंमभ्यङ्गभाजां हृदमपि विषमाहि प्राहिणो द्यामुनं सः ॥ निजभुजबलशाली हेलयैवावगाह्य | हृदमपि कुपितोत्थं कालियाहिं महोग्रम् ॥ फणमणिकिरणद्योग्दीर्णवह्निस्फुलिङ्ग - । व्यतिकरमतिकृष्णं मंक्षु कृष्णो ममर्द || -- हरिवंशपुराण ३६।६-७, पृ० ४५-६० ४०. हरिवंशपुराण ३६।८-१०, पृ० ४६० ४१. वहीं ० ३६।११-१५, पृ० ४६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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