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________________ १६२ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण व्यवस्थित रूप से एक स्थान पर एकत्रित करने से कृष्ण का तेजस्वी रूप हमारे सामने आता है । अन्तकृत्दशाङ्ग', समवायाङ्ग गायाधम्मकहाओ स्थानाङ्ग निरियावलिका प्रश्नव्याकरण उत्तराध्ययन', आदि में उनके महान् व्यक्तित्व के दर्शन होते हैं । वे अनेक गुण सम्पन्न और सदाचार निष्ठ थे, अत्यन्त ओजस्वी, तेजस्वी, वर्चस्वी, और यशस्वी महापुरुष थे । उन्हें ओघबली, अतिबली, महाबली अप्रतिहत और अपराजित कहा गया है | उनके शरीर में अपार बल था । वे महारत्न वज्र को भी चुटकी से पीस डालते थे । मनोविज्ञान का नियम है कि बाह्य व्यक्तित्व ही अन्तरंग व्यक्तित्व का प्रथम परिचायक होता है। जिसके चेहरे पर ओज हो, प्रभाव चमक रहा हो, आकृति में सौन्दर्य छलक रहा हो, आंखों में मन्दस्मित, शारीरिक गठन की सुभव्यता व सुन्दरता हो, उसका प्रथम दर्शन ही व्यक्ति को प्रभावित कर देता है । और जहां बाह्यसौन्दर्य के साथ आन्तरिक सौन्दर्य भी हो, तो वहां तो सोने में सुगन्ध की उक्ति चरितार्थ हो जाती है । यही कारण है कि जितने भी विशिष्ट पुरुष हुए हैं उनका बाह्य व्यक्तित्व अत्यन्त आकर्षक और २. वर्ग १, अध्ययन १ में द्वारिका के वैभव व कृष्ण वासुदेव का वर्णन, वर्ग ३, अ० ८ वें में कृष्ण के लघुभ्राता गजसुकुमार का वर्णन, वर्ग ५ में द्वारिका का विनाश और कृष्ण के देह त्याग का उल्लेख है । ३. श्लाघनीय पुरुषों की पंक्ति में श्रीकृष्ण का उल्लेख तथा उनके प्रतिद्वन्दी जरासंध के वध का वर्णन है । ४. प्रथम श्रुतस्कंध के अध्ययन ५ वें में थावच्चा पुत्र की दीक्षा और श्रीकृष्ण का दल-बल सहित रैवतक पर्वत पर अरिष्टनेमि के दर्शनार्थ जाना । अ० १६ वें में अमरकंका जाने का वर्णन । ५. अ०८ वें कृष्ण की आठ अग्रमहिषियों का वर्णन, उनके नाम | ६. प्रथम अध्ययन में द्वारिका नगरी के राजा कृष्ण वासुदेव का रैवतक पर्वत पर अर्हत् अरिष्टनेमि के सभा में जाने का वर्णन । ७. चतुर्थ आश्रव द्वार में श्री कृष्ण द्वारा दो अग्रमहिषियों रुक्मणी और पद्मावती के लिए किये गए युद्धों का वर्णन | ८. अध्ययन २२ में । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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