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________________ १०८ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण गणधरों में वरदत्त प्रमुख गणधर थे, अन्य गणधरों का परिचय इन ग्रन्थों में नहीं मिलता और न इनके नाम ही इन में हैं। ___ किन्तु आचार्य भद्रबाहु ने कल्पसूत्र में अरिष्टनेमि के अठारह गण और अठारह गणधर लिखे हैं । वे किस अपेक्षा से लिखे गये हैं, यह विज्ञों के लिए विचारणीय है । एक चिन्तनीय प्रश्न : नियुक्ति, वृत्ति और आचार्य हेमचन्द्र के त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र के अनुसार रथनेमि चार सौ वर्ष गृहस्थाश्रम में रहे, एक वर्ष वे छद्मस्थ रहे और पाँच सौ वर्ष केवली पर्याय में। इस प्रकार उनका नौ सौ वर्ष का आयुष्य हुआ।२८ इसी प्रकार कौमारावस्था, २४. (क) तित्तीस अट्ठावीसा, अट्ठारस चेव तहय सत्तरस । एक्कारसदसनवगं, गणाणमाणं जिणिदाणं ॥ एक्कारस उ गणहरा, वीरजिणिदस्स सेसयाणं तु । जावइया जस्स गणा तावइया गणधरा तस्स ॥ -आवश्यकनियुक्ति गा० २६०-२६१ (ख) अरिष्टनेमेरेकादश-मलयगिरिवृत्ति० पृ० २१० २५. तैः सह वरदत्तादीनेकादशगणाधिपान् । स्थापयामास विधिवन्नेमिनाथो जगद्गुरुः ।। ___-त्रिषष्टि० ८।६।३७५, पृ० १४२ २६. वरदत्तादयोऽभूवन्नेकादश गणेशिनः । -उत्तरपुराण ७१।१८२। ८७ २७. अरहओ णं अरिट्ठने मिस्स अट्ठारस गणा गणहरा होत्था । -कल्पसूत्र १६६ पृ० २६६ २८. (क) नियुक्ति-रहने मिस्स भगवओ, गिहत्थए चउर हुँति वाससया। संवच्छरछउमत्थो, पंचसए केवली हुंति ।। नववाससए वासा - हिए उ सव्वाउगस्स नायव्वं । एसो उ चेव कालो, राव (य) मईए उ नायवो ।। -~अभिधान राजेन्द्र कोष० भाग० ६ पृ० ४६६ (ख) तत्र चत्वारि वर्षशतानि गृहस्थपर्यायः, वर्ष छद्मस्थ पर्यायः, वर्ष शतकपञ्चकं केवलिपर्याय इति, मिलितानि नव वर्षशतानि वर्षाधिकानि सर्वाऽऽयुरभिहितम् । -अभिधान० भा० ६ पृ० ४६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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