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________________ सम्यक्चारित्र के लिए किए गए विपरीत प्रयत्नों के सन्दर्भ में ... परन्तु मिठाई खाने में सुख है - ऐसी मान्यता नहीं मिटी है, अर्थात् अभिप्राय में वासना विद्यमान है। उपर्युक्त स्थिति मात्र शुगर वालों की या बीमार लोगों की ही होती है - ऐसा नहीं है। अनेक प्रसंगों में हम सबकी यही स्थिति होती है। जब हम भरपेट भोजन कर चुके होते हैं, तब हमारी भोजन करने की इच्छा बिल्कुल नहीं होती। यदि कोई बहुत जोर-जबर्दस्ती करके एक रसगुल्ला भी खिलाए तो हमें अत्यन्त कष्ट होता है, इसलिए हम विनम्रता पूर्वक मना कर देते हैं। ऐसी स्थिति में क्या हमें भोजन से द्वेष हो गया है ? क्या हम उस समय भी भोजन करने में सुख नहीं मानते ? अवश्य मानते हैं। हम भोजन करें या न करें; हमारी भोजन करने की इच्छा हो या न हो ? परन्तु भोजन में सुख हैहमारी यह मान्यता निरन्तर कायम रहती है। यही अभिप्राय की वासना है। भोजन के समान ही पञ्चेन्द्रियों के समस्त विषयों में सुखबुद्धि तथा व्रत, शील, संयम आदि धर्माचरण में धर्मबुद्धि होने से हमारी यही स्थिति होती है। सम्यक्चारित्र के सन्दर्भ में परिणाम और अभिप्राय यहाँ विषय-भोगों की क्रिया और परिणाम के सन्दर्भ में अभिप्राय की चर्चा करने का प्रकरण नहीं है; यहाँ तो जिसे सम्यक्चारित्र कहा जाता है, ऐसी क्रिया और तदनुकूल मन्दकषायरूप परिणामों के पीछे अभिप्राय की वासना का विश्लेषण करने का प्रकरण है; क्योंकि इसी के कारण यह जीव पञ्च महाव्रतों का निर्दोष आचरण एवं तदनुसार महामन्दकषायरूप परिणाम होने पर भी मिथ्यादृष्टि ही रहता है, मोक्षमार्गी नहीं हो पाता। यदि हमें संसार के दुःखों से छूटने की गहरी तड़फ है, शाश्वत अतीन्द्रिय आनन्द प्राप्त करने की गहरी लगन है, तो हमें अभिप्राय की वासना अर्थात् मिथ्या मान्यताओं का स्वरूप समझकर यथार्थ तत्त्वश्रद्धान के द्वारा उनका समूल क्षय अवश्य करना चाहिए। यथार्थ तत्त्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003168
Book TitleKriya Parinam aur Abhipray
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAbhaykumar Jain
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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