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________________ जैनधर्म की सर्वव्यापकता तारों की अनेक मूर्तियां वहां मिलती हैं और भारत के मन्दिरों की तरह वहां भी मन्दिर हैं । वहां भी जन्म मरण पर भारत के रिवाजों के समान ही मृतक शरीर के अग्निदाह का रिवाज है। श्री चमनलाल ने अपनी शोधखोज में वहां ३० वर्ष व्यतीत किए और भारतीयों के वहां बस जाने के प्रमाण एकत्रित किए । यद्यपि उस देश में हाथी और चीते नहीं हैं तो भी वहां पत्थर पर उन के चित्रों की खुदायी भारतीय प्रभाव की साक्षी है।। ईस्वी सन् ४०० में चीनी यात्री शोधक तथा विद्वान फाहीयान भारत आकर यहां से २०० यात्रियों के बैठाने की क्षमता वाली नाव में चीन वापिस गया था। भारत में बने हुए इतनी क्षमता के जहाज उन समुद्रों को पार करते थे जिनमें भयंकर तूफान पाया करते थे। ऐसे जहाजों के लिए एक इतिहासविद के विचारों के अनुसार पेसी फिक महासागर पार करना और अमेरिका जाना असंभव नहीं माना जा सकता। भारत के जहाज बनाने की क्षमता के विषय में सर जोहन मालकोम ने कहा है कि योरुप वाले विज्ञान में बढ़े हुए होने पर भी वे भारत आने-जाने के लिए इनकी बराबरी करने योग्य जहाज दो शताब्दियों तक नहीं बना सके । फ्रांस के म्यूजियम में श्री ऋषभदेव की मूर्ति फ्रांस की राजधानी पेरिस के प्रसिद्ध म्यूजियम के संग्रहालय में एक सुन्दर कलाकृति की श्री ऋषभदेव की प्रतिमा सुरक्षित है । जिसमें पादपीठ पर तीन छत्र के नीचे कायोत्सर्ग मुद्रा में वे खड़े हैं। (सं०नं० एम जी० ३६४४)। उनके सिर पर घंघराले काले केश जटाजूट रूप में दोनों कन्धों पर लटकते हुए सुसज्जित हैं। जिस पादपीठ पर वे खड़े हैं वहां एक वृषभ की बैठी प्राकृति अंकित है। जिस से मूर्ति पहचानने में सहायता मिलती है। विछत्र के ऊपर अशोकवक्ष की पत्तियों का अंकन है, प्रतिमा के दोनों ओर अष्टमंगल तथा एक-एक मालाधारी देव का चित्रण है जो पुष्पवृष्टि करते हुए प्रतीत होते हैं । पैरों के निकट दोनों तरफ चामरधारी सेवक इन्द्र खड़े हैं । प्रतिमा के सिर के पीछे गोलाकार प्रभामंडल है । वृषभ की मूर्ति के एक ओर प्रतिमा के दान कर्ता (प्रतिष्ठापक) पति-पत्नी बैठे हैं तथा दूसरी और पूजा की सामग्री रखी है, ऐसा अकन है। यह प्रतिमा नग्न है । यद्यपि यह ऋषदेव की प्रतिमा नग्न है तथापि यह श्वेताम्बर प्रतिमा है क्योंकि इसके सिरपर जटाजूट कन्धों तक लटकते केश है। यह प्रतिमा श्री सुपार्श्वनाथ के श्वेताम्बर स्तप कंकाली टीले से प्राप्त केशों वाली ऋभदेव की मूर्तियों तथा श्री केशरियानाथ के मन्दिर में मलनायक श्री ऋषभदेव की नग्न तथा केशों वाली प्रतिमाओं के साथ मिलती जुलती है। बेबीलोन का शासक नेबुचन्द्रनेझार ग्रीस, मिस्र और ईरान के प्राचीन लेखकों की कृतियों में पाये जाने वाले उल्लेखों, बेबीलोन चंपा (इण्डो चायना), कम्बोज (कम्बोडिया) के भूखनन तथा मध्य अफरीका, मध्य अमरीका के अवशेषों में बिखरी पड़ी जैन सस्कृति पर प्रकाश डालने अथवा शोध-खोज करने की तरफ न तो जैन समाज ने और न ही पुरातत्त्व वेत्ताओं ने श्रम किया है, सम्राट सप्रति के विश्व व्यापी जैनधर्म प्रचार तथा हमारे जैन चक्रवर्तियों के विजय मार्गों आदि को ऐतिहासिक रूप देने में हम लोगों ने अपने अभ्यास का उपयोग नहीं किया। 1. Jain Gernal July 1970 V. G. Nayar. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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