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________________ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म नि उसके साथ युनान गये और अनेक वर्षों तक वे एथन्स नगर में रहे। कल्याण एक जैन मुनि माने गये हैं । उन्होंने एथन्स में संलेखना की। उनका समाधि स्थान एथेन्स में पाया गया है। ___A naked sraman-acharya (Jainacharya) went to greece as his smadhi spot was found marked at Athens. (J. H. Q. vol. II p. 293) युनान के तत्त्वज्ञान पर जैन तत्त्वज्ञान का प्रभाव है यथा Greek philosophy do betray Jain influence (confluence of opposities). ___ महान युनानी तत्त्वज्ञानी पीरो ने जैन श्रमणों के पास रहकर तत्त्वज्ञान का अभ्यास किया था। पश्चात् उसने अपने सिद्धान्तों का युनान में प्रचार किया था (Historical Gleaning p. 42) । पुराने युनानियो को श्रमण मिले थे जो जैन धर्मानुयायी थे वे लोग एथोपिया और एबेसीनिया में विचरण (विहार) करते थे (Asiatic Researches vol. III p. 6)। ईसा पूर्व १२ वीं शताब्दी की एक कांसे की रेषेभ (रिषभ) की मूर्ति इनकापी के निकट अलासिया-साइप्रस में मिली थी । जो तीर्थंकर ऋषभ के समान ही थी । ऋषभ की मूर्तियां मलाशिया, बोघाजक्यूल में और इसबुकजूर की यादगारों में हिट्टटी देवताओं में प्रमुख देवताओं के रूप में मिली है। सोवियत प्रारमेनिया की खुदाई में एरीवान के निकट कारमीर ब्लूर टेशाबानी के पुरातन नगर यूराटियन में कुछ मूर्तियां मिली हैं जिनमें एक कांसे की ऋषभ की मूर्ति भी है। ऋषभदेव की तथा अन्य तीर्थंकरों की मूर्तियां दूसरे देशों में भी मिली हैं। जिनके विषय में सचित्र लेख कुछ भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में भी छप चुके हैं। इन देशों में जैन सिद्धान्त और ब्राह्मी लिपि स्वीकार की गई है। सिन्धुघाटी की लिपि फिलिस्तीन के यहूदियों की प्राचीन लिपि थी। मिस्र की प्राचीन हीरोलिफिक्स, प्राचीन चीनी लिपि तथा सुमेरियन लिपि ब्राह्मी लिपि से मिलती-जुलती थी । अमेरिका की कोलम्बस के पूर्व की संस्कृति का प्रारम्भ भारत से ही हुआ था। जो पुरातन यूरोप की चार प्रमुख प्राचीन संस्कृतियां जैसे कि अमेरिका में, दक्षिण-पश्चिम के प्यूबलो में, घाटियों वाले अजटेक में, मवेशीको के ऊंचे भाग में, वहां के यूकाटन प्रायः द्वीप की माया-संस्कृति और पीरू की संस्कृति ये सब प्राचीन मिस्र, मेसोपोटेमिया और सिन्धुघाटी की संस्कृतियों से समानता रखती थीं। टोकियो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नाकामूरा को चीनी भाषा में एक जैन सूत्र मिला था। इससे प्रमाणित होता है कि शताब्दियों पहले चीन में भी जैनधर्म प्रचलित था।(इसको विस्तार से हम पहले लिख पाये हैं) भारतीय और युरोपीय धार्मिक इतिहास से इस बात के विश्वसनीय प्रमाण मिलने सम्भव हैं कि आर्हत् धर्म दुनियां के अनेक भागों में मानव समाज का प्रमुख धर्म था। उपर्युक्त बातों के समर्थन में एक प्रसिद्ध पत्रकार और लेखक श्री चमनलाल की अनेक वर्षों की शोध-खोज के परिणाम स्वरूप संसार में भारतीय संस्कृति के प्रभाव पर ता० २० जुलाई १९७५ ईस्वी के हिन्दुस्तान टाइम्स देहली में लेख छपे जिनका सार नीचे दिया जाता है प्राचीन काल में भारत सदियों तक बहुत अच्छे प्रकार के जहाज बनाता था जो पेसीफिक प्रादि महासमुद्रों में चलाया करते थे और मेक्सिको,दक्षिण अमेरिका तथा दक्षिण पूर्व एशिया से भारत का सम्पर्क कराते थे। जिससे उन देशों पर भारतीय संस्कृति का गहरा प्रभाव पड़ा। मेक्सिको में आज भी भारत की तरह चपाती, दाल और पेठे आदि साग खाए जाते हैं। भारतीय देवी-देव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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