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________________ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म २६. महावीर के उपदेशों का सूत्र रूप में २६. महावीर की वाणी जो गणधरों द्वारा संकलन गणधरों ने किया । तब से लेकर संकलित की गई थी उनका एकदम गुरुपरम्परा से शिष्यों-प्रशिष्यों ने उन्हें विच्छेद हो जाने से विक्रम की पांचवीकंठस्थ रखा । स्मरणशक्ति कम हो जाने छठी शताब्दी के दिगम्बराचार्यों ने नवीन से उन्हें लिपिबद्ध किया गया, जो आज ग्रंथों की रचनाएं कीं। इन्हीं शास्त्रों को तक सुरक्षित हैं और श्वेताँबर जैन आज दिगम्बर आगम मानते हैं। ये प्राचार्य तक इन्हें सुरक्षित रखते पा रहे हैं। न तो पूर्वधर थे और न ही ११ अंगों के जानकार। २७. चक्रवर्ती के ६४००० स्त्रियां होती हैं। २७. चक्रवर्ती के ६६००० स्त्रियां होती हैं। २८. दीक्षा लेते समय तीर्थ कर के कंधे पर २८. दीक्षा लेते समय तीर्थ कर एकदम नंगा इन्द्र देव दूष्य वस्त्र देता है। होता है। २६. तीर्थकर का जन्म कल्याणक महोत्सव २६. इन्द्र पाँच रूप धारण नही करता। एक करने के लिये इन्द्र अपने पांच रूप रूप से ही जन्म कल्याणक मनाता है। धारण करता हैं। ३०. तीर्थ करों, कैवलियों, युगलियों के देहा- ३०. तीर्थ करों, केवलियों, युगलियों के देहा वसान से बाद उनके शरीर कायम रहते वसान के बाद उनके शरीरों के पुद्गलहैं तथा उनका प्रग्नि संस्कार किया परमाणु कपूर के समान स्वयमेव वायुमंडल जाता है। में मिल जाते हैं इसलिए उनके शरीरों का अग्नि संस्कार नहीं किया जा सकता। ३१. इन्द्रों की ६४ संख्या है। ३१. इन्द्रों की १०० संख्या है। ३२. तीर्थकरों के सहोदर भाई-बहन होते हैं। ३२. तीर्थकर के सहोदर भाई बहन नहीं होते। ३३. तीर्थ कर प्रतिमा का पूजन सचित अचित ३३. मात्र प्रचित द्रव्यों में ही पूजा करते हैं। दोनों प्रकार के द्रव्यों से किया जाता है। ३४. तीर्थ कर दीक्षा लेने से पहले वर्षीदान ३४. तीर्थकर वर्षीदान नहीं देते। ३५. तीर्थ कर और चक्रवर्ती की माता तीर्थ कर- ३५. तीर्थ कर चक्रवर्ती की माता उनके गर्भ में चक्रवर्ती के गर्भ में आने पर १४ स्वप्न आने पर १६ स्वप्न देखती है। देखती है। ३६. दस प्राश्चर्य-कृष्ण का अपरकंकादि ३६. ११ आश्चर्य भिन्न प्रकार के है। गमन । ३७. कल्पोपन्न देवों के १२ विमान । ३७. कल्पोपन्न देवों को १६ विमान । ३८. ब्राह्मी सुन्दरी द्वारा बाहुबली ने प्रतिबोध ३८. भरत चक्रवर्ती द्वारा बोध पाकर पाकर केवलज्ञान प्राप्त किया। बाहुबली ने केवलज्ञान प्राप्त किया। ३६. नाभि-मरूदेवी का युगल रूप में जन्म ३६. नाभि-मरूदेवी का युगल रूप में जन्म हुग्रा। नहीं हुआ। ४०. केवली का आहार निहार चर्मचक्षु द्वारा ४०. केवली आहार निहार नहीं करता। यानी दिखलाई नहीं देता। खाता पीता नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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