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________________ मौर्य सम्राट और जैनधर्म २७५ नरेन्द्रों की कोटि में इस प्रकार परिणित यह भारतीय सम्राट चाहे वह अशोक हो या सम्प्रति अथवा दादा-पोता दोनों ही, संयुक्त या समान रूप से भारतीय इतिहास के गौरव रूप हैं और रहेंगे। जैनधर्म के साथ इन दोनों का ही निकट और घनिष्ट सम्बन्ध रहा है। यदि हम सम्प्रति को जीवन पर्यन्त जैनधर्म का उत्साही भक्त मानते हैं तो अशोक को भी अजैन तो कह ही नहीं सकते । पुरातत्त्व सामग्री में उत्कीर्ण लेख १, मुद्राएं २, स्मारक ३. आदि प्राचीन सत्य इतिहास के परिशीलन में बहुत ही उपयोगी हैं । (१) उत्कीर्ण लेखों में (क)शिलालेख, (ख) प्रतिमालेख, (ग) स्तम्भलेख (घ) ताम्रपत्रलेख, (ङ) प्रशान्तिलेख प्रादि का समावेश है । __ उत्कीर्ण लेख-फ्लीट (Fleet) के कथनानुसार उत्कीर्ण लेखों (Inscription) के गंभीर निरीक्षण से ही प्राचीन भारत के इतिहास का ज्ञान मुख्य रूप से प्राप्त किया गया है । इनके बिना ऐतिहासिक घटनाएं तथा तिथियां निश्चित न हो पातीं। और जो सामग्री हमें परम्परा, साहित्य, मुद्रामों, कलाओं, भवनों या अन्य किसी साधन से प्राप्त होती है, सब इतिहास को क्रमबद्ध करती हैं। ये लेख भारत के विभिन्न विभागों में विभिन्न रूपों में उपलब्ध होते हैं। ऐसे लेख स्तम्भों, शिलाओं, गुफाओं पर ही नहीं अपितु मुद्राओं, मूर्तियों, प्रस्तरों, ताम्रपत्रों तथा अन्य धातुओं पर भी मिलते हैं। (२) मुद्राएं-अथवा सिक्के प्राचीन इतिहास का एक अन्य महत्वपूर्ण स्रोत है । बहत अधिक संख्या में प्राचीन राजाओं, महाराजाओं के सोने चांदी, तांबे तथा मिश्रित धातुओं के सिक्के प्राप्त हए हैं। उन पर प्रायः राजाओं के नाम, उनकी मूर्तियाँ, तिथियां और कुछ एक देवताओं, पशुपक्षियों के चित्र अंकित हैं । अथवा धर्मचिन्ह आदि अंकित होते हैं। जो इन राजानों के वंश-वक्ष, महान्कार्य, शासनप्रबन्ध, राजनैतिक व धार्मिक विचार जानने में बहुत सहायक सिद्ध होते हैं। यहाँ पर हम सम्राट् सम्प्रति के सिक्कों का संक्षिप्त परिचय देते हैं जो उसके धार्मिक विचार जानने के लिये उपयोगी हैं। संप्रति के सिक्कों में एक तरफ ऊपर नीचे शब्द लिखे हैं तथा दूसरी तरफ़ चिन्ह अंकित हैं। किसी सिक्के में चिन्ह भी मिलता है। ये सिक्के और उनपर अंकित चिन्ह सम्प्रति के राज्य शासन में उसकी आस्था पर सुन्दर प्रकाश डालते हैं। सामान्यतया मौर्य सिक्कों पर ऊपर नीचे शब्द अंकित हैं और दूसरी तरफ अथवा' चिन्ह है। जैन श्रावक-श्राविकाएं हमेशा जैन मंदिर में प्रभु के सामने चावलों से ऐसे चिन्ह बनाते हैं। इन चिन्हों से सम्प्रति सम्राट का जैनधर्मी होना स्पष्ट है। जैन अनुश्रुतियों के अनुसार सम्प्रति का शासनकाल पचास वर्ष रहा। तिब्बती तारानाथ ५४ वर्ष मानता है। ऐसा लगता है कि उसने लगभग ४० वर्ष स्वतंत्र राज्य किया और लगभग 1. It is almost entirely from a patient examination of the inscriptions that our knowledge of ancient political history of India has been derived. Hardly any definite dates and identification can be established except from them. And they regulate every thing that we can learn from the tradition, literature, coins, art, architecture or any other source. (Fleet) सम्प मौ 3.:. 4. 5. य्यो6. 7.卐 8. मार्डन रिव्यु सन् ईस्वी १९३४ जून का अंक पृष्ठ ६४७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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