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________________ सिंधु-सौवीर में जैनधर्म २०३ (५) यह बात निःसंदेह है कि ईसा पर जैनधर्म का पूरा-पूरा प्रभाव पड़ा था और इसी के सिद्धान्तों के संबल से इसने मानव समाज में बिना किसी भेदभाव के अपने नये ईसाई मत का प्रचार व प्रसार किया था। मानव मानव में समानता, प्राणी मात्र से सम्भाव, नर-नारी के समानाधिकार, ब्राह्मण-क्षत्रियों के समान ही वैश्यों और शूद्रों को धर्माधिकारी बनाना, अहिंसा, समता तथा उदारतामय जीवन निर्माण करने-कराने का पाठ जैन-महर्षियों ने ही उसे दिया था और इन्हीं सिद्धांतों के प्रचार तथा प्रसार करने के कारण ईसा विश्व में अमर हो गया। बौद्धधर्म और पंजाब तथागत गौतम बुद्ध ने मात्र मध्यम देश में ही विचरण करके बौद्धधर्म का उपदेश दिया था । तथागत बुद्ध पदचारिका करते हुए पश्चिम में मथुरा (अंगुत्तर निकाय ५.२ १०, इस सूत्र में मथुरा नगर के पाँच दोष दिखलाये गये हैं) और कुरु के थुल्ल कोठित नगर (२.३.३२-दिल्ली के आस-पास का कोई तत्कालीन नगर) से आगे नहीं बढ़े थे । पूर्व में कजंगला निगम मुखेलुवन (मज्झिम निकाय ३.५.१७-कंकजोल संथाल परगना, बिहार), पूर्व-दक्षिण की सलिलवती नदी (वर्तमान सिलई नदी, हजारीबाग और वीरभूम) के तीर को पार नहीं किया था। दक्षिण में सुसुमारगिरि (चुनार ज़िला मिर्जापुर) आदि विंध्याचल के पास-पास वाले निगमों तक ही गये थे । उत्तर में हिमालय की तलहटी के सापुग निगम (अंगुत्तर निकाय ४.४.५.४) और उसीरध्वज पर्वत (हरिद्वार के पास कोई पर्वत) के ऊपर नहीं गये थे। विनय पिटक में मध्यम देश की सीमा इस प्रकार बतलाई गई है। ___ "१-पूरब में कजंगला निगम.....। २-पूर्व दक्षिण में सलिलवती नदी ३ -- दक्षिण में सेतकाणिक निगम (हज़ारी बाग़ जिले में कोई स्थान.....। ४---पश्चिम दिशा में यूण (आधुनिक थेनेश्वर) नामक ब्राह्मणों का ग्राम · · · । ५--उत्तर दिशा में उसीरध्वज पर्वत (विनयपिटक ५ ३.२)। मध्यम देश ३०० योजन लंबा और २५० योजन चौड़ा था। इसका परिमंडल ६०० योजन था । यह जम्बूद्वीप (भारतवर्ष) का एक बृहद भाग था। तत्कालीन १६ जनपदों में १४ जनपद इसी में थे। यथा-१-काशी, २-कोशल, ३-अंग, ४-मगध, ५-वज्जी, ६-मल्ल, ७-चेदी, ८-वत्स, ह-कूरु, १०-पांचाल, ११-मत्स्य, १२-शूरसेन, १३-अश्वक, १४-अवन्ती। शेष दो जनपद १५-गांधार और १६-कम्बोज उत्तरापथ में पड़ते थे। गांधार की राजधानी तक्षशिला थी। बौद्धों ने इन्हीं १६ जनपदों को आर्य देश माना है। बाकी के सब जनपदों को अनार्य माना हैं। १. गौतम बुद्ध के बाद सम्राट अशोक आदि के समय में काश्मीर, गांधार (तक्षशिला) और कम्बोज (अफ़ग़ानिस्तान) जनपदों तक ही बुद्धधर्म का प्रसार हो पाया था। इसके आगे पंजाब, सिंधु-सौवीर, कुरुक्षेत्र आदि जनपदों में इस धर्म के प्रसार के विषय में इतिहास तथा बौद्ध वाङ्गमय एकदम मौन हैं । २. उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि सिंधु-सौवीर, पंजाब प्रादि जनपदों को बौद्धों और वैदिक प्रार्यों ने प्रनार्य देश कहा है। जबकि जैनधर्म इन्हें प्रार्य देशों में ही मानता है। इससे स्पष्ट हैं कि प्राचीन काल से ही, सिंधु-सौवीर प्रादि जनपदों में जैनधर्म का प्रभाव ही मुख्यरूप से रहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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