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________________ मध्य एशिया और पंजाब में जैनधर्म शूद्रों में ब्राह्मणों और क्षत्रियों के विरुद्ध आन्दोलन शुरू कर दिया। उसने कहा कि ऐसा सिद्धांत जो मानव और मानव के बीच खाई पैदा करता है, ऊंच-नीच की भावना को प्रोत्साहित करता हैमानव को ईश्वर भक्ति और धर्मशास्त्रों के पढ़ने-सुनने से वंचित रखता है वह धर्म नहीं है वह तो मानव को गुमराह करने वाला सिद्धांत ऐसा पूरे वेग से प्रचार शुरु कर दिया। ___इस प्रचार से ब्राह्मण आगबबूला हो गये। उन्होंने उसकी हत्या करने के लिये षडयंत्र की तैयारियां शुरू कर दी और नौकरों को उसे खोज कर पकड़ लाने के लिए चारों तरफ़ भेज दिया। ईसा को शूद्रों द्वारा पहले से ही पता लग चुका था कि उसकी हत्या कर दी जावेगी। वह चपचाप रात के समय वहां से भाग निकला। इस प्रकार २४ वर्ष की आयु में १२ वर्ष के बाद वह हिमालय की पहाड़ियों पर बौद्ध लामानों के वहाँ पहुँचा वहां उसने छह वर्ष तक पाली भाषा के बौद्ध ग्रंथों का अभ्यास किया। इस प्रकार १३ वर्ष की आयु से लेकर ३० वर्ष की आयु तक १८ वर्षों में छह वर्ष जैनों के पास, छह वर्ष ब्राह्मणों और छह वर्ष बौद्धों के बीच में रहकर जैन, वैदिक तथा बौद्ध सिद्धांतों का ईसा ने परिचय पाया और पश्चात् ३० वर्ष की आयु में भारत से बाहर अपने ईसाई मत का स्वतंत्र रूप से प्रचार प्रारंभ किया। सारांश (१) यद्यपि लेखक ने ईसा के सिंध में रहकर जैन महर्षियों के पास रहने और अभ्यास करने के समय का उल्लेख नहीं किया। परन्तु जैनों के वहाँ से जाने के बाद ब्राह्मणों तथा बौद्धों के वहाँ उसने १२ वर्ष व्यतीत किये, इस बात का उल्लेख किया है । ईसा ने १३ वर्ष की आयु से लेकर ३० वर्ष की आयु तक १८ वर्ष भारत में व्यतीत किये इससे स्पष्ट है कि उसने सर्वप्रथम छह वर्ष जैनों के पास रहकर जैनधर्म के प्राचार और सिद्धान्तों का अभ्यास किया। (२) पश्चात् ब्राह्मणों के वहाँ अभ्यास करने पर उसे लगा कि जो जैनधर्म में उदारता और समानता की भावनाएँ निहित हैं वे इस मत में नहीं है इसलिये उसने खुलम-खुल्ला उस मत के विरुद्ध प्रान्दोलन शुरू कर दिया । इससे यह स्पष्ट है कि ईसा पर जैनधर्म की गहरी और अमिट छाप पड़ चुकी थी और उसी के अनुसार उसने अपनी जान को जोखम में डालकर भी शूद्रों को गले लगाया तथा नर-नारी को समान रूप से धर्म का अधिकारी बतलाया। जैसा कि तीर्थंकर वर्धमान महावीर ने किया था। (३) बुद्धधर्म का अभ्यास उसने दोनों सिद्धान्तों के पश्चात् किया और वहाँ से वह तुरंत इस्राईल चला गया। इससे भी यह स्पष्ट है कि इस उदारता और समानता के आन्दोलन में उस समय उस पर बौद्धधर्भ का कोई सम्पर्क और प्रभाव नहीं था। (४) इससे यह भी पता चलता है कि सिंध-पंजाब में सर्वत्र जैनधर्म का ही प्रभाव था परन्तु ब्राह्मणों और बौद्धों का इन जनपदों में कोई वर्चस्व नहीं था। यदि इन दोनों का भी यहाँ वर्चस्व होता तो, ईसा इसी जनपद में वैदिक ब्राह्मणों तथा बौद्धों के वहाँ हकर शिक्षा ग्रहण कर सकता था, उसे जगन्नाथ, राजगृही, बनारस आदि में ब्राह्मणों के वहाँ तथा हिमालय की पहाड़ियों में लद्दाख आदि नगरों में जाकर बौद्ध लामाओं के वहाँ जाने की आवश्यकता नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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