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________________ सिंधु-सौवीर में जैनधर्म १८१ हो जाता हो और इसकी राजधानी कम्पिला हो। इसलिए यह शोध का विषय है। क्योंकि प्राचीन काल में थानेश्वर तथा हिसार के क्षेत्र को भी पांचाल देश में माना है। १-सिन्धु-सौवीर का राजा उदायरा भगवान महावीर का समकालीन सिन्धु-सौवीर जनपद का राजा उद्रायण (उदायण) था इसकी राजधानी वीतभयपत्तन थी। यह शब्द तीन शब्दों के मेल से निष्पन्न हुआ है। वीतभाया पत्तन । वीत का अर्थ है 'दूर हो गया है', भय का अर्थ है 'डर' और पत्तन का अर्थ है 'नदी तटवर्ती नगर' । मतलब यह है कि सिन्धु-सौवीर जनपद की राजधानी वीतभयपत्तन [सिन्धु नदी के तट पर आबाद एक ऐसा महान नगर था जहां का राजा धर्मपरायण, प्रजावत्सल और महान शरवीर था। इसकी शूरवीरता के कारण शत्र राजा इस देश पर आक्रमण करने का साहस भी नहीं करते थे। राजा के धार्मिक और प्रजावत्सल होने के कारण प्रजा का उत्पीड़न भी नहीं होता था। प्रजा को न तो स्वचक्र का और परचक्र का भय था और न ही राजा द्वारा शोषित और पीड़ित होने का डर था। अतः सारे राज्य की प्रजा सर्वथा निर्भय होकर सुख और शांति से निवास करती थी। यही कारण था कि इसका नाम वीतभयपत्तन सार्थक था। "यथा राजा तथा प्रजा" की उक्ति को सत्य सिद्ध करने के लिए यहां की प्रजा भी धार्मिक-पवित्र विचारों तथा निर्दोष आचरण वाली थी । उस समय यहां का मुख्य धर्म जैनधर्म था। इस राजधानी के प्राधीन ३६३ नगर ६८५०० ग्राम, अनेक खाने और सोलह देश थे। महाराजा उदायन की सेवा में महासेन (चंडप्रद्योत) आदि १० महाप्राक्रमी मुकटधारी राजा रहते थे। वीतभयपत्तन व्यापार का बहुत बड़ा केन्द्र था । इस नगर का विस्तार कई मीलों में था। उदायन की पटरानी का नाम प्रभावती था। यह गणतंत्रनायक महाराजा चेटक की सबसे बडी पुत्री थी। चेटक भगवान महावीर के मामा ' तथा त्रिशला (महावीर की माता) के सगे 1. जैनागम पंचमांग भगवती सूत्र शतक १३ उद्देशा ६ 2. (१) पत्तन (२) नगर (३) पुर (४) क्षेत्र, इन चार शब्दों का प्रयोग इस प्रकार है-(१) पत्तन- नदी अथवा समुद्री तट पर अवस्थित शहर को पत्तन कहा जाता था। बंदरगाहों के लिए विशेष रूप से प्रयुक्त होता था ! पत्तन शब्द के लिए चाणक्य लिखता है कि "चारिस्थल पथ पत्तनानि निदेशयत(अध्यक्ष प्रचार द्वितीय अधिकरण) (२) नगर शहरी शब्द का द्योतक है। (३) पुर किसी व्यक्ति के नाम से बसाये गये नगर के पीछे जोड़ दिया जाता था। जैसे जोधाजी द्वारा बसाया गया जोधपुर, उदयसिंह से उदयपुर इत्यादि । (४) क्षेत्र इस शब्द का अपभ्रंश खेत शब्द है। अन्नोत्पादक भूमि, उत्पत्तिस्थान, प्रदेश, तथा तीर्थस्थान के लिए क्षेत्र शब्द का प्रयोग हुआ है । क्षेत्र भूखण्ड विशेष की निरधारित सीमा के लिए भी आता है। क्षेत्र के अन्तर्गत नगर. पुर, पत्तन ग्राम आदि सब आ जाते हैं। 3. से णं उदायणे राया सिंधु-सौवीर प्पमोखाणं सोलसण्हं जणवयाणं बीतीभयपमोक्खाणं तिण्हं तेसट्ठीणं नगरागार सयाणं महसेणप्पमोकखाणं दसहणं राइणं बद्ध मउडाणं (भगवती सूत्र शतक १३ उ० ६) ऐसा ही उल्लेख उत्तराध्ययन नेमिचन्द्राचार्य की टीका सहित पत्र २५२११ में भी है। 4. (अ) तस्य प्रभावती राज्ञी जज्ञे चेटकराट् सुता । विभ्रमिनसे जेन (मा) उदायणस्स रणो महादेवी चेडग रायध्या समणावास या पभावई । (उत्तराध्ययन सूत्र नेमिचन्द्र टीका पत्र २५३/१ (इ) प्रभावतीदेवी समणोवासिया। (आवश्यक चूणि पूर्वाद्ध पत्र ३६६) 5. उत्तराध्ययन सूत्र भावविजय की टीका अध्यायन १८ श्लोक ६। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003165
Book TitleMadhya Asia aur Punjab me Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1979
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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