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________________ ३. सत्पुरुष बनाने का उपक्रम इस सृष्टि का एक महत्त्वपूर्ण प्राणी है मनुष्य । इस धरती पर पहला मनुष्य कब आया, यह कहना कठिन है। किन्तु आज वह पांच अरब से भी अधिक संख्या में अपनी अस्मिता की लड़ाई लड़ रहा है। मनुष्य जाति एक और अविभाज्य है, पर सब मनुष्यों का स्वभाव एक जैसा नहीं होता। राजर्षि भर्तृहरि ने चार प्रकार के मनुष्यों की चर्चा की है-सत्पुरुष, साधारण पुरुष, राक्षस पुरुष और अनाम पुरुष। सत्पुरुष वे होते हैं, जो अपने स्वार्थ को गौण कर परहित का सम्पादन करते हैं। जो लोग अपना स्वार्थ साधते हुए परहित-साधन के लिए तत्पर रहते हैं, वे साधारण पुरुष होते हैं। जो व्यक्ति अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए परहित को कुचल देते हैं, वे राक्षस पुरुष होते हैं। जो लोग बिना किसी प्रयोजन परहित को विघटित करते हैं, वे कौन पुरुष हैं? उनके लिए कोई विशेषण ही उपलब्ध नहीं है। इसलिए उन्हें अनाम पुरुष कहा जा सकता है। अणुव्रत का उद्देश्य है कि मनुष्य सत्पुरुष बने । मैं अपनी प्रवचन-सभाओं में बहुत बार कहता हूं कि आप जैन बर्ने या नहीं, गुडमैन अवश्य बने । गुडमैन बनें, अच्छे आदमी बनें, सत्पुरुष बनें। मनुष्य जीवन की सार्थकता किसी के हितों को कुचलने में नहीं है। संसार में जितने आतंकवादी हैं, वे क्या कर रहे हैं? दूसरों के हितों को विघटित करना ही उनके जीवन का लक्ष्य बन गया है। अन्यथा वे निरपराध व्यक्तियों का अपहरण क्यों करते हैं? फिरौती में लाखों-करोड़ों रुपयों की मांग क्यों करते हैं? मासूम बच्चों का अपहरण क्यों करते हैं? रुपये न मिलने पर उनको मौत के घाट क्यों उतार देते हैं? ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं, जिनके उत्तर किसी गहरी खामोशी में खो गए हैं। आतंकवादी प्रत्यक्ष हिंसक हैं। इस संसार में परोक्ष हिंसक भी कम नहीं ६ : दीये से दीया जले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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