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________________ महावीर-निर्वाण के बाद की रचना है। इसलिए उसमें उत्तरवर्ती व्यवस्थाएं जुड़ी हुई हैं। सामान्यतः इतना कहा जा सकता है कि पर्युषण का सम्बन्ध चातुर्मास की स्थापना से है। भाद्रपद शुक्ला पंचमी का दिन उस दृष्टि से आखिरी दिन है। उसका अतिक्रमण नहीं हो सकता। उस दिन सांवत्सरिक उपवास किया जाता था। विगय वर्जन आदि के संकल्प भी चलते थे। इनका विकास उत्तरकाल में हुआ प्रतीत होता है। जिज्ञासा-एक ही परम्परा में एक सर्वोत्कृष्ट पर्व भिन्न-भिन्न समय में मनाने की प्रथा कब और क्यों प्रचलित हुई? ___समाधान-जैन शासन में दो मुख्य परम्पराएं हैं-श्वेताम्बर और दिगम्बर। दिगम्बर परम्परा में आगम सूत्रों को अस्वीकार कर दिया गया। फलतः अनेक परम्पराएं छूट गईं। आश्चर्य है कि उस परम्परा में पर्युषण जैसे पर्व का कोई विवरण उपलब्ध नहीं है। दिगम्बर लोग 'दस लक्षण' मनाते हैं। उसका प्रारम्भिक दिन पंचमी है। श्वेताम्बर परम्परा में प्राचीन काल से ही पर्युषण या संवत्सरी के लिए भाद्रपद शुक्ला पंचमी का दिन निर्धारित रहा है। कालकाचार्य ने विशेष परिस्थितिवश भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी को संवत्सरी का पर्व मनाया था। इतिहास बताता है कि प्रतिष्ठानपुर का राजा शातवाहन कालकाचार्य के सम्पर्क में आया, उनसे प्रभावित हुआ। कालकाचार्य ने संवत्सरी पर्व का महत्त्व समझाया। शातवाहन ने प्रार्थना की- 'गुरुदेव ! मैं संवत्सरी पर्व की आराधना करना चाहता हूं। पर मेरे सामने एक समस्या है। पंचमी के दिन हमारे नगर में इन्द्र महोत्सव का आयोजन है। उसमें मेरी उपस्थिति अनिवार्य है। इस कारण मैं संवत्सरी पर्व की आराधना में भाग नहीं ले सकूँगा। आप इस पर्व को छठ के दिन मना लें तो मैं वहां से निवृत्त होकर यहां पहुंच जाऊंगा।' ___ कालकाचार्य ने कहा-'यह असंभव है। हमारे आगम पंचमी का दिन अतिक्रान्त करने की अनुमति नहीं देते।' राजा ने निवेदन किया- “संभव हो तो इस पर्व का आयोजन एक दिन पहले चतुर्थी को कर लें।' इस प्रस्ताव को उनहोंने मान्य कर लिया और चतुर्थी को संवत्सरी मना ली। विशेष परिस्थिति में किया गया प्रयोग स्थाई बन गया। इस प्रकार श्वेताम्बर परम्परा में संवत्सरी मनाने के दो दिन हो गए-पंचमी और चतुर्थी। चतुर्थी को १६० : दीये से दीया जले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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