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________________ २३४ अमूर्त चिन्तन पहुंचते । संप्रदायों के विचार दो दिशाओं में पहुंच सकते हैं, दो दिशामागी हो सकते हैं, किन्तु अध्यात्म के विचार दो दिशागामी नहीं हो सकते । अध्यात्म के मार्ग से जो पहुंचेगा वह एक ही बिन्दु पर पहुंचेगा । भगवान् महावीर ने कहा- 'आत्म-नियंत्रण में सबसे बड़ी बाधा है भोजन । भोजन सुस्ती लाता है ।' टालस्टॉय ने कहा- 'जो भोजन का संयम नहीं करता वह सुस्ती को कैसे मिटा सकेगा ? जो आलस्य, सुस्ती और प्रमाद को नहीं मिटा पाता, वह आत्म-नियंत्रण कैसे कर पाएगा।' उन्होंने कहा- हमारी कुछ मौलिक इच्छाएं होती हैं । यदि हम उन इच्छाओं को समाप्त नहीं कर सकते तो उन इच्छाओं के आधार पर पलने वाली दूसरी जटिल इच्छाओं को कभी समाप्त नहीं कर सकते। जीने की कामना, भोजन की कामना, काम की कामना और लड़ने की कामना - ये मौलिक इच्छाएं हैं । सभी प्राणियों में ये बनी रहती हैं। यदि इन पर नियंत्रण नहीं पाया गया तो इनके आधार पर पलने वाली अन्य जटिल इच्छाओं पर कभी नियंत्रण नहीं पाया जा सकता। इसलिए यह आवश्यक है कि साधक सबसे पहले मौलिक इच्छाओं पर विजय प्राप्त करे, उन पर नियंत्रण करे । ' हम आत्म-नियंत्रण का अभ्यास उपवास से शुरू करें, अनशन से शुरू करें, कम खाने से करें और खाने की वृत्तियों का संक्षेप करके करें और अपनी वृत्तियों को उभारने वाले रसों के संयम के द्वारा करें। यह आत्म-नियंत्रण का पहला सूत्र है 1 आत्म-नियंत्रण का दूसरा सूत्र है - शरीर । हम शरीर को साधें, यह बहुत आवश्यक है। जब तक स्नायुओं को नया अभ्यास नहीं दिया जाता, स्नायुओं को नई आदत के निर्माण का अभ्यास नहीं दिया जाता, तब तक व्यक्तित्व का निर्माण नहीं किया जा सकता। विलियम जेम्स ने अपनी पुस्तक 'दि प्रिन्सिपल ऑफ साइकोलॉजी' में मनोवैज्ञानिक ढंग से चर्चा करते हुए लिखा है- 'अच्छा जीवन जीने के लिए अच्छी आदतों को बनाना जरूरी है और अच्छी आदतों के निर्माण के लिए अभ्यास जरूरी है । यदि हम अभ्यास किए बिना यह चाहें कि हमारी आदतें बदल जाएं तो ऐसा कभी नहीं होगा । असफलता ही हाथ लगेगी।' उन्होंने अच्छी आदतों के निर्माण के लिए कुछ सूत्र प्रस्तुत किए हैं १. अच्छी आदतें डालनी हों तो सबसे पहले अच्छी आदतों का चिंतन करो, अभ्यास करो और पुरानी / बुरी आदतों को रोको । २. अच्छी आदतें डालने के लिए शरीर को एक विशेष प्रकार का अभ्यास दो, क्योंकि शरीर की विशेष स्थिति का निर्माण किए बिना हमारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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