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________________ आत्मानुशासन अनुप्रेक्षा २३३ नियमों को मानना है, राष्ट्र के नियमों का पालन करना है, क्योंकि वह राष्ट्र में रहता है। यदि शिक्षा के द्वारा उसकी यह मानसिकता नहीं बनती है तो वह अच्छा विद्यार्थी नहीं बन सकता। इससे भी अधिक जरूरी है संवेगों पर नियंत्रण करना। यह नैतिकता का महत्त्वपूर्ण बिन्दु है। यह शिक्षा के साथ जुड़े। शिक्षा के साथ मानसिक शक्ति के विकास की बात भी जुड़ी होनी चाहिए। इस शक्ति का विकास जिस राष्ट्र, समाज या व्यक्ति में नहीं होता, वह कमजोर हो जाता है। जिन व्यक्तियों में मनोबल का विकास और भावात्मक विकास-दोनों न्यून हैं, शिक्षाशास्त्री उनके विकास के लिए नई-नई पद्धतियां प्रस्तुत कर रहे हैं। आज अपेक्षा है कि सामाजिक परिवेश बदले और वर्ग-संघर्ष, वैमनस्य आदि समस्याएं समाहित हों। इसके लिए भावात्मक विकास अपेक्षित है। अच्छे-बुरे का नियंत्रण कक्ष वह साधना क्या है जिसके द्वारा कषाय को मंद नहीं किया जा सकता है ? यह एक प्रश्न है। इस पर हम सोचेंगे तो यह स्पष्ट प्रतिभासित होगा कि अध्यात्म का समूचा तंत्र, अध्यात्म का समूचा उपदेश और धर्म की सारी गाथाएं कषाय को मंद करने के लिए कही गयी हैं। उनका एक मात्र प्रयोजन भी यही है। अपरिग्रह, अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, क्षमा, संतोष, दान, शील-इन सबका उपदेश इसलिए है कि कषाय मंद हो। उपदेश और उपदेश का अगला चरण है-अभ्यास। यह सबने जान लिया कि कषाय को मंद करने के लिए आत्म-नियंत्रण जरूरी है, अभ्यास जरूरी है। फिर प्रश्न होता है कि अभ्यास कहां से प्रारंभ करें ? सबसे पहले क्या करें ? इस प्रश्न पर धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र में चर्चाए हुई हैं तो मनोविज्ञान ने भी इस प्रश्न पर विचार किया है। टालस्टॉय ने इस प्रश्न का सुन्दर समाधान दिया। उन्होंने कहा--'अच्छे जीवन की पहली शर्त है-आत्म-नियंत्रण और आत्म-नियंत्रण की पहली शर्त है-उपवास । हमें आत्म-नियंत्रण का अभ्यास उपवास से शुरू करना चाहिए।' यह है एक महर्षि का चिंतन, जो वर्तमान युग का साधक या महर्षि कहलाता था। भगवान् महावीर ने तपस्या के बारह प्रकार बतलाए। उन्होंने कहा-'आत्म-नियंत्रण का प्रारंभ तपस्या से करो, अनशन से शुरू करो।' प्राचीन चिन्तन और वर्तमान चिन्तन-दोनों एक बिन्दु पर मिल गए। जो भी आत्मा का अनुभव करने वाले साधक हैं वे दो मार्ग या दो लक्ष्य पर न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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