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________________ अनासक्ति अनुप्रेक्षा २०३ विश्वामित्र, पराशर आदि ऋषि हवा, पत्ते और पानी खाते थे । वे भी स्त्री के सुललित मुख को देखकर भ्रष्ट हो गए। जो आदमी घी सहित आहार करे, दूध-दही खाए और इन्द्रियों का निग्रह भी रखे, कितना बड़ा आश्चर्य है । यदि ऐसा होता है तो मान लेना चाहिए कि विन्ध्य पर्वत सागर में तैर रहा है । पत्ते - पानी खाने वाले विश्वामित्र और पराशर मोह में फंस गए और वेश्या के घर रहने वाले ब्रह्मचारी रहे, यह बात समझ में नहीं आती। एक बार सन्नाटा सा छा गया। आचार्य हेमचन्द्र ने स्थिति को पढ़ा तो लगा वातावरण हाथ से जा रहा है। तब वे बोले 'सिंहो बली द्विरदशूकरमांसभोजी, संवत्सरेण रतिमेति किलैकवारम् । पारापत: खरशिलाकणभोजनोऽपि कामी भवत्यनुदिनं वद कोत्र द्रतुः । सिंह मांस खाता है, फिर भी वह वर्ष में एक बार भोग करता है । कबूतर दाने चुगता है और कंकर चुगता है फिर भी प्रतिदिन भोग करता रहता है । इसका हेतु क्या है ? भोजन ही इसका हेतु हो नहीं सकता 1 आचार्य के यह कहते ही सारा वातावरण बदल गया । सब कहने लगे- आचार्य ने ठीक कहा है । मूल स्रोत मन की आसक्ति है । आसक्ति और अनासक्ति के आधार पर ही परिणति होती है । अनासक्तियोग दुःख की घटनाएं घटती हैं, उन्हें कोई रोक नहीं सकता । भूकंप आता है, तूफान आता है, समुद्री बवंडर आता है - इन्हें कोई रोक नहीं सकता । उल्कापात होता है, उसे कोई रोक नहीं सकता। बीमारियां और प्राकृतिक प्रकोप की घटनाएं घटित होती हैं, उन्हें कोई रोक नहीं सकता । किन्तु मनुष्य एक काम कर सकता है। वह इन अवश्यम्भावी प्रकोपों से होने वाले दुःखद संवेदनों से अपने आपको बचा सकता है । ये घटनाएं मन और मस्तिष्क को बोझिल बना देती हैं और जीते-जी मरने की स्थिति में ला देती हैं । इनसे बचा जा सकता है। घटना घटित होगी, परन्तु व्यक्ति इनके साथ नहीं जुड़ेगा । वह जुड़ेगा तो इतना ही कि घटना घटी है और उसका ज्ञान है । इससे अधिक घटना के साथ कोई सम्पर्क नहीं होगा । घटना चेतन मन तक पहुंचेगी। वह अवचेतन मन को स्पर्श भी नहीं कर पाएगी। चेतन मन पर घटना का प्रतिबिम्ब पड़ेगा, अवचेतन मन पर नहीं। वहां उसकी प्रतिक्रिया भी नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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