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________________ अनासक्ति अनुप्रेक्षा भगवान् महावीर ने कहा है-इन्द्रियों के विषय क्षणमात्र सुख देते हैं। उसका परिणाम दु:खकर और लम्बा होता है। एक घटना तत्काल घट जाती है, पर उसका परिणाम दीर्घकाल तक भोगना पड़ता है। किसी व्यक्ति ने कोई वस्तु खाई। उसका स्वाद जीभ पर आधा या एक मिनट तक रहता है। किसी का स्वाद ४-५ मिनट भी टिक जाता है, परन्तु उसी वस्तु का परिणाम वर्षों तक भोगना पड़ सकता है। परिणाम को जानते हैं, फिर ऐसा क्यों करते हैं? जानते हुए भी मोहवश ऐसा कर लेते हैं। महाभारत में कहा है-धर्म को जानते हैं फिर भी उसमें प्रवृत्ति नहीं होती। अधर्म को जानते हैं लेकिन वह छोड़ा नहीं जाता। अधिक खाने के दुष्परिणाम को भोगता हुआ भी व्यक्ति मोहवश मनोज्ञ पदार्थ नहीं छोड़ सकता। लोग विषय-भोग के परिणामों को जानते हुए भी अपनी शक्ति और वीर्य की सुरक्षा नहीं कर पाते। यूनानी दार्शनिक सुकरात से किसी ने पूछा-पुरुष को अपने जीवन में सम्भोग कितनी बार करना चाहिए? सुकरात ने उत्तर दिया-जीवन में एक बार। इतना सम्भव न हो तो वर्ष में एक बार । यह भी संभव न हो तो महीने में एक बार। यह भी सम्भव न हो तो दिन में एक बार। यह भी संभव न हो तो सिर पर कफन रख लो फिर चाहे जितनी बार करो। आवश्यकता पूर्ति की बात सदा रहती है, पर यथार्थ के प्रति गाढ़ आसक्ति नहीं होती। आवश्यकता पूर्ति एक बात है और आसक्ति दूसरी बात है। अपने जीवन की अनिवार्य आवश्यकता को पूरी करना यह तो अनिवार्यता है, किन्तु पदार्थों के प्रति आसक्त हो जाना अनिवार्यता नहीं है। यह तो स्वयं का ही व्यामोह है। जो शांति और संवेग का अनुभव कर चुका है वह कहीं आसक्त नहीं होगा। वह मार्ग में कभी आसक्त नहीं होगा। वह मंजिल तक पहुंचेगा किंतु पथ में कहीं आसक्त नहीं होगा। वह मानेगा कि मार्ग मात्र चलने के लिए है। उसमें आसक्त होने जैसी बात नहीं है। स्वीकार नहीं किया। उन्होंने कहा-- 'विश्वामित्रपराशरप्रभृतयो ताताम्बुपर्णाशनाः, तेऽपि स्त्रीमुखपंकजं सुललितं दृष्टैव मोहं गताः । शाल्यन्नं सघृतं पयोदधियुतं ये भुञ्जते मानवास्तेषामिन्द्रियनिग्रहो यदि भवेद् विन्ध्यस्तरेत् सागरम् ।।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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