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________________ आचार्य भिक्षुकृत जम्बूचरित का सांस्कृतिक अध्ययन "पिण मोनें तो मोटा सद्गुरु मिलिया, म्हें जाण्यो जिन धर्म साचो रे । (छ) रत्नत्रय का महत्त्व :-- जम्बू अपनी माता से कहता है-मोह करने से कर्मों का बन्ध होता है। चारित्र के पालन से संसार परिभ्रमण समाप्त हो जाता है और शिवरूपी रमणी का शीघ्र वरण होता है "ए साधपणो सुध पालियां, माता कटे छे कर्मा राजाल । शिव रमणी वेगी वरे, वले मिट जाए सर्व जंजाल ।।५१ नव तत्त्व विचारणा सुधर्मास्वामी जम्बूकुमार को नवतत्त्व के स्वरूप को समझाते हैं"सुधर्म स्वामी तिण अवसरे, बागरी वाणी अनूप । जीवादिक नव तत्त्व तणो, कह्यो विवरा सुध स्वरूप ॥"५२ प्रभव चोर भी अपने ५०० साथियों को नव तत्त्व की विवेचना से प्रतिबोध देता है जिससे उनके मन में वैराग्य हो जाता है और संयम के लिए तत्पर हो जाते हैं । १. आत्म-चितन :--प्रभव आत्म-चिंतन करता है कि मैं राजकुमार होते हुए भी सद्संस्कारों के अभाव में चोरों का अधिपति बन गया और कहाँ यह श्रेष्ठी जंबू जिसने सद्संस्कारों के कारण युवावस्था में ही धन और अप्सरा के समान सुन्दर ८ पत्नियों का परित्याग कर संयमी जीवन जीने के लिए तत्पर है । इसलिए मुझे भी जम्बूकुमार के साथ संयम ग्रहण कर अपने जीवन को सार्थक बनाना चाहिए। २. मोक्ष की प्राप्ति :-जम्बू स्वामी ने अनेक जीवों का उद्धार कर स्वयं भी अष्टकर्म-क्षय कर मोक्ष को प्राप्त किया "जम्बू स्वामी छेहला केवली, श्री वीर ना शासन मझार हो। ते मुगत गया आरे पाँचमें, त्यांरो नाम लियांइ निस्तार हो ।।"५५ इस प्रकार अनेक सांस्कृतिक तत्त्व जम्बूकुमार चरित में पाए जाते हैं। संदर्भ : १. शिवदत्तज्ञानी : भारतीय संस्कृति, पृ० १७ २. भिक्षु ग्रंथ रत्नाकर-खण्ड २, जम्बूचरित, ढाल ७, दूहा ५, पृ० ५६५ ३. वही, ६/गाथा २/पृ० ५६४ ४. वही, ढा० १३, दु० १-६ पृ. ५७३-५७४ ५. वही, ढा० २२, गाथा १-६ पृ० ५९२ ६. वही, ६/४/पृ० ५६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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