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________________ १९० "माह अंध जीव फिरे मतवालो, त्यांनें सदगुरु री सीख न लागे रेलो । हंस-हंस कर्म बांधे दिन राते, त्यांरी खबर पडेसी आगे रे लो ॥ २८ वीं ढाल में उल्लेख घोड़ी के अनाज खाने में अन्तराय देने से चारक के प्रचुर कर्मों का बन्ध होता है, जिसके कारण वह मरकर कुरूप ब्राह्मण बनता है तथा उसे चारों ओर तिरस्कार ही तिरस्कार मिलता है । ३. संसार की नश्वरता : - जम्बूकुमार ने अपनी पत्नियों को संसार की नश्वरता का प्रतिबोध दिया । जिसका विस्तृत वर्णन १४ वीं ढाल में है । और भी कई स्थलों पर बार-बार संसार की नश्वरता का चित्रण मिलता है । 3 जम्बू ने प्रभव चोर को भी संसार की क्षणभंगुरता को बतला कर प्रतिबोध दिया । ४४ ૪૨ तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान - (क) कामभोग नरक का द्वार : --जम्बू अपनी पत्नी समुद्रश्री को समझाते हुए कहता है कामभोग आमिष जिसा जी, काग जिसा जे जीव । ४५ ते रति पामसी कामभोग में जी, त्यां दीधी नरक री नींव ।' (ख) दुःख का कारण लोभ :- पद्मश्री अपने पति जम्बू से कहती है, कि जैसे बन्दर ने देवता बनने का लोभ किया तो वह बहुत दुःखी हुआ । आपको भी बन्दर की तरह पश्चात्ताप न करना पड़े इसलिए मोक्ष-सुख की लालसा को छोड़ पुण्य से उपलब्ध सुखों का ही उपभोग करें । " (ग) दुष्कर्म से दुर्गति - ललितकुमार ने विषयासक्ति के कारण रानी से प्रेम किया तो उसे सेतखाने में गिरना पड़ा। इसलिए जम्बू अपनी पत्नी जयन्तश्री से कहता है कि यदि मैं तुम लोगों से प्रेम करता हूँ तो नरकनिगोद में पड़ जाऊँगा तथा चारों गति में भ्रमण करना पड़ेगा । अतः मैं ललित कुमार की तरह मूर्ख नहीं हूँ । मुझे चारित्र लेकर अष्टकर्म-क्षय कर मोक्ष को प्राप्त करना है ।" (घ) सच्चा मित्र : करना । जैसे— "हूं तो मित्री करसू जिन हूं छटू संसार नां दुःख धर्म नें ज्यू म्हारा सुधरे आत्म काजो जी । थकी, पामूं भुगतपुरी नों राजो जी ॥ ४८ (ङ) लक्ष्य : - जम्बू कहता है - मेरा एक ही लक्ष्य है मोक्ष प्राप्त ११४९ " म्हारो बंछा एक मुगत री, अवर न आवे दाय ।' कहता है— (च) सद्गुरु : - जम्बू अपनी पत्नी कनकसेना को समझाते हुए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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