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________________ ५४ अहिंसा तत्त्व दर्शन उदाहरणों द्वारा समझाते हुए कहा १. एक सेठ की दूकान में साधु ठहरे हुए थे। करीब रात के बारह बजे थे। गहरा सन्नाटा था । नि:स्तब्ध वातावरण में चारों ओर मूक शान्ति थी। चोर आए । सेठ की दूकान में घुसे । ताला तोड़ा। धन की थैलियाँ ले मुड़ने लगे। इतने में उनकी निःस्तब्धता भंग करने वाली आवाज़ आयी-'भाई ! तुम कौन हो ?' उनको कुछ कहने का, करने का मौका ही नहीं मिला कि तीन साधु सामने आ खड़े हो गए। चोरों ने देखा कि साधु हैं, उनका भय मिट गया और उत्तर में बोले'महाराज ! हम हैं...' उन्हें यह विश्वास था कि साधुओं के द्वारा हमारा अनिष्ट होने का नहीं, इसलिए उन्होंने और स्पष्ट शब्दों में कहा—'महाराज ! हम चोर हैं...'साधुओं ने कहा-'इतना बुरा कार्य करते हो, यह ठीक नहीं।' साधु बैठ गए और चोर भी। अब दोनों का संवाद चला । साधुओं ने चोरी की बुराई बताई और चोरों ने अपनी परिस्थिति । समय बहुत बीत चला। दिन होने चला। आखिर चोरों पर उपदेश असर कर गया। उनके हृदय में परिवर्तन आया। उन्होंने चोरी को आत्म-पतन का कारण मान उसे छोड़ने का निश्चय कर लिया। चोरी न करने का नियम' भी कर लिया । वे अब चोर नहीं रहे, इसलिए उन्हें भय भी नहीं रहा। कुछ उजाला हुआ, लोग इधर-उधर घूमने लगे। वह सेठ भी घूमता-घूमता अपनी दूकान के पास से निकला। टूटे ताले और खुले किवाड़ देख वह अवाक्-सा हो गया। तुरन्त ऊपर आया और देखा कि दूकान की एक ओर चोर बैठे हैं, साधुओं से बात कर रहे हैं और उनके पास धन की थैलियाँ पड़ी हैं । सेठ को कुछ आशा बंधी। कुछ कहने जैसा हुआ, इतने में चोर बोले'सेठजी ! यह आपका धन सुरक्षित है, चिन्ता न करें। यदि आज ये साधु यहाँ न होते तो आप भी करीब-करीब साधु-जैसे बन जाते। यह मुनि के उपदेश का प्रभाव है कि हम लोग सदा के लिए इस बुराई से बच गए और इसके साथ-साथ आपका यह धन भी बच गया।' सेठ बड़ा प्रसन्न हुआ। अपना धन सम्भाल मुनि को धन्यवाद देता हुआ अपने घर चला गया। यह पहला चोर का दृष्टान्त है । इसमें दो बातें हुईं—एक तो साधुओं का उपदेश सुन चोरों ने चोरी छोड़ी, इसमें चोरों की आत्मा चोरी के पाप से बची और दूसरी, उसके साथ सेठजी का धन भी बचा । अब सोचना यह है कि इसमें आध्यात्मिक धर्म कौन-सा है ? चोरों की आत्मा चोरी के पाप से बची, वह या सेठजी का धन बचा, वह ? २. कसाई बकरों को आगे किए जा रहा था। मार्ग में साधु मिले। उनमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003133
Book TitleAhimsa Tattva Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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