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________________ ४० अहिंका तत्त्व दर्शन न्यूनता और अधिकता का कारण मारे जाने वाले प्राणी की क्षुद्रता और महत्ता नहीं किन्तु मारने वाले के मन्द-भाव, तीन-भाव, अज्ञान-भाव, ज्ञान-भाव आदिआदि अनेक कारण हैं। इसलिए एकमात्र मारे जाने वाले प्राणी के हिसाब से कर्मबन्ध की न्यूनाधिकता का निर्णय नहीं किया जा सकता । हिंसा किसी भी स्थिति में हिंसा है । उससे कर्म-बन्ध होता है--यह निश्चित है। हिंसा का सूक्ष्म विचार अप्रत्याख्यानी-पापकर्मों का त्याग न करने वाली आत्मा असंयत, अविरत होती है । वह मन, वचन, शरीर और वाक्य के विचार से रहित हो, स्वप्न भी न देखती हो, अत्यन्त अव्यक्त विज्ञान वाली हो, फिर भी पाप-कर्म करती है।' प्रश्न होता है कि जिस प्राणी के मन, वचन और काय पाप-कर्म में लगे हुए नहीं हैं, जो प्राणियों की हिंसा नहीं करता और जो मन, वचन, काय और वाक्य से रहित है तथा जो स्वप्न भी नहीं देखता यानी अव्यक्त विज्ञान वाला है, वह प्राणी पाप करने वाला नहीं माना जा सकता । क्योंकि मन, वचन और काया के पापयुक्त होने पर ही मानसिक, वाचिक और कायिक पाप किए जाते हैं, परन्तु जिन प्राणियों का ज्ञान अव्यक्त है, जो पाप-कर्मों के साधन से हीन हैं, उनके द्वारा पाप-कर्म किया जाना सम्भव नहीं । उत्तर यह है कि जो जीव छह काय के जीवों की हिंसा से विरत नहीं हैं किन्तु अवसर, साधन और शक्ति आदि कारणों के अभाव से उनकी हिंसा नहीं करते, वे उन प्राणियों के अहिंसक नहीं कहे जा सकते। प्राणातिपात आदि पापों से जो निवृत्त नहीं, वह किसी भी अवस्था में हो, पाप-कर्म करता है। जो लोग यह कहते हैं कि 'प्राणियों की हिंसा न करने वाले जो प्राणी मनोविकल और अव्यक्त ज्ञान वाले हैं, उनको पाप-कर्म का बन्ध नहीं होता-यह कहना ठीक नहीं है । एक वधक किसी कारण से गाथापति अथवा उसके पुत्र या राजा अथवा राजकुमार के ऊपर क्रुद्ध होकर इस खोज में रहता है कि अवसर मिलने पर मैं इनका वध करूँगा । वह अपनी इच्छा को सफल करने का अवसर नहीं पाता, तब तक दूसरे कार्य में लगा हुआ उदासीन-सा बना रहता है । उस समय वह यद्यपि घात नहीं करता तथापि उसके हृदय में उनके घात का भाव उस समय भी बना रहता है। वह सदा उनके घात के लिए तत्पर रहता है परन्तु अवसर न मिलने पर घात नहीं कर सकता । अतः घात न करने १. सूत्रकृतांग २।४ २. वही, २१४१६४ ३. वही, २।४।६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003133
Book TitleAhimsa Tattva Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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