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________________ अहिंसा तत्त्व दर्शन उनके अनुयायी पैलेस्टाइन में घुसे और वहां खून की नदियां बहाई । न जाने कितने लोगों को कत्ल किया और न जाने कितनी युवती स्त्रियों को पकड़कर आपस में बांट लिया। इन बातों को अहिंसा कहना हो तो फिर हिंसा किसे कहा जाए ? तात्पर्य यह है कि पार्श्व के पहले पृथ्वी पर सच्ची अहिंसा से भरा हुआ धर्म या तत्त्वज्ञान था ही नहीं। पार्श्व मुनि ने एक और भी बात की। उन्होंने अहिंसा को सत्य, अस्तेय और अपरिग्रह, इन तीनों नियमों के साथ जकड़ दिया। इस कारण पहले जो अहिंसा ऋषि-मुनियों के आचरण तक ही थी और जनता के व्यवहार में जिसका कोई स्थान न था, वह अब इन नियमों के सम्बन्ध में सामाजिक एवं व्यावहारिक हो गई। पार्श्व मुनि ने तीसरी बात यह की कि अपने नवीन धर्म के प्रचार के लिए उन्होंने संघ बनाए। बौद्ध साहित्य से इस बात का पता लगता है कि बुद्ध के समय जो संघ विद्यमान थे, उन सब में जैन साधु और साध्वियों का संघ सबसे बड़ा था। पार्श्व के पहले ब्राह्मणों के बड़े-बड़े समूह थे, पर वे सिर्फ यज्ञ-याग का प्रचार करने के लिए ही थे। यज्ञ-याग का तिरस्कार कर उसका त्याग करके जंगलों में तपस्या करने वालों के भी संघ थे। तपस्या का एक अंग समझकर ही वे अहिंसा धर्म का पालन करते थे, पर समाज में उसका उपदेश नहीं देते थे। वे लोगों से बहुत कम मिलते-जुलते थे।' ___ भगवान् पार्श्वनाथ का संघ भगवान महावीर की संघ-स्थापना के बाद तक चला और क्रमशः वह उसी में सम्मिलित हो गया। भगवान् महावीर भगवान् महावीर का अस्तित्व काल ई० पू० पाँचवीं-छठी शती है। वे अहिंसा के महान् व्याख्याता और प्रयोक्ता थे। उनके धर्म का सर्वस्व अहिंसा था। यद्यपि उस समय के सभी श्रमण और वैदिक तंत्र पार्श्व की अहिंसा से यत्किचित् प्रभावित थे, किन्तु उसका सर्वाधिक स्वीकार और विकास महावीर ने किया था। __ भगवान् महावीर ने व्रतों को व्यापक बना हिंसा और परिग्रह के अल्पीकरण की दिशा दी, फिर भी समाज अहिंसक यानी अहिंसा-प्रधान नहीं बना। उनके संघ में वे ही व्यक्ति सम्मिलित हुए, जो मोक्षार्थी थे। इसलिए वह सामुदायिक अहिंसा का योग आत्म-साधना के स्तर पर ही विकसित हुआ, किन्तु उसका असर जीवन की सब दिशाओं में और सब पर हुआ। निवृत्ति-धर्म भी उपयुक्त मात्रा में समाजमान्य बन गया। इस तथ्य को सामने रखकर ही हम भगवान् महावीर के अहिंसा १. भारतीय संस्कृति और अहिंसा, पृ० ४१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003133
Book TitleAhimsa Tattva Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size10 MB
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