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________________ आजादी की लड़ाई आज हमने एक युद्ध शुरू किया है। प्रातःकाल में अनुप्रेक्षा का अभ्यास किया। यह एक युद्ध है। सबसे पहले, जहां हम बैठे हैं, उस हॉल से लड़े । फिर अपने आसन से, कपड़ों से, फिर शरीर से और अन्त में कर्मशरीर से लड़े। क्रोध, मान, माया, राग, द्वेष, ईर्ष्या आदि आवेगों से लड़े । भयंकर युद्ध छिड़ गया। हम मोर्चे पर डटे रहे। अच्छा हुआ, इतने दिन बाहर ही बाहर लड़ते रहे। आज लड़ने की दिशा बदल गयी। बाहर की लड़ाई बन्द हो गयी। भीतर की लड़ाई प्रारंभ हो गयी। भीतर की लड़ाई प्रारम्भ होते ही मैत्री की भावना घटित होने लगती है अब बाहर के साथ मैत्री करनी होगी या वह स्वतः सध जाएगी। मैत्री-संधि करनी पड़ेगी। अब दोहरी लड़ाई हम नहीं लड़ सकते । बाहर की लड़ाई भी लड़ें और भीतर की लड़ाई भी लड़ें, यह नहीं हो सकता। एक ही लड़ाई संभव है। या तो भीतर की लड़ाई चलेगी या बाहर की लड़ाई चलेगी। दोनों साथ-साथ नहीं चल सकतीं। दोनों ओर लड़ेंगे तो हम पराजित हो जाएंगे। विजय प्राप्त करने के लिए एक ही लड़ाई लड़नी होगी। हमने भीतर का युद्ध प्रारंभ कर दिया। अब हम किसी के साथ शत्रुता नहीं रख सकते । सबके साथ मैत्री-संधि करनी होगी। यह करने पर ही हम भीतर की लड़ाई में सफल हो सकेंगे। अन्यथा हम पराजित हो जाएंगे । यह वैसी ही लड़ाई है जैसी चक्रवर्ती भरत और बाहुबली के बीच हुई थी। भरत की विशाल सेना ने बाहुबली पर आक्रमण कर दिया। भरत चक्रवर्ती था। विशाल प्रदेश का स्वामी, विशाल सेना का अधिनायक । बाहुबली छोटे प्रदेश का स्वामी, छोटी सेना का मालिक । चक्रवर्ती की विशाल सेना के आक्रमण को हम मोह और मूर्छा का आक्रमण मानें तो बाहुबली की छोटी सेना का प्रतिरोध चेतना की अल्प जागृति मानें। भरत ने चुनौती दी कि "तुम मेरी आज्ञा मानो, मेरी सीमा में यदि रहना चाहते हो तो मेरी प्रभुसत्ता स्वीकार करो।" बाहुबली ने कहा---"यह असंभव है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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