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________________ १८८ किसने कहा मन चंचल है नेगेटिव । दोनों शक्तियों का संगम होता है तब प्रकाश होता है। इसे हम स्निग्ध और रूक्ष कह सकते हैं। स्निग्ध का अर्थ चिकना नहीं है और रूक्ष का अर्थ रूखा नहीं है। स्निग्ध का अर्थ है-'पोजिटिव' विद्युत् और रूक्ष का अर्थ है-'नेगेटिव' विद्युत् । एक धनात्मक विद्युत् और एक ऋणात्मक विद्युत् । जब धन और ऋण-दोनों का संगम होता है तब आलोक फैलता है। दोनों विरोधी हैं, पर दोनों में शत्रुभाव नहीं है। दोनों विद्युत् साथसाथ काम करती हैं और उपयोगिता को बढ़ाती हैं। सारे पदार्थ और पुद्गल इन विरोधी धर्मों के द्वारा ही हमारी उपयोगिता में आ रहे हैं। ___ हमारे शरीर में महत्त्वपूर्ण अंग है-मस्तिष्क । उसके दो भाग हैं-- एक दायां और एक बायां । हम हाथ से लिखते हैं। मस्तिष्क का बायां हिस्सा उसको नियंत्रित करता है। दाएं हिस्से की जितनी प्रवृत्तियां हैं उनका कन्ट्रोल करता है मस्तिष्क का बायां हिस्सा और बांए हिस्से की जितनी प्रवृत्तियां हैं उनका कन्ट्रोल करता है मस्तिष्क का दायां हिस्सा । दाएं हिस्से की प्रवृत्ति का नियंत्रण दायां मस्तिष्क नहीं करता और बाएं हिस्से की प्रवृत्ति का नियंत्रण बायां मस्तिष्क नहीं करता। किन्तु विरोधी भाग नियंत्रण करता है। ___इससे यह स्पष्ट होता है कि पदार्थ-जगत् में अविरोध मान्य नहीं है। विरोधी होने का मतलब ही अविरोध है। ऐसी स्थिति में हम किसी को विरोधी या शत्र क्यों मानें ! जिसने भिन्न मत प्रकट किया उसको विरोधी मान लिया। उससे शत्रुता कर ली। यह क्यों ? मैत्री का अर्थ है-भेद और अभेद में सामंजस्य की अनुभूति । यदि हम मैत्री का यही अर्थ करें कि साथ में रहना, अच्छा व्यवहार करना, साथ में काम करना, तो मैत्री को हम बहुत ही सीमित कर देंगे । केवल सौ-पचास व्यक्तियों से ही मैत्री साध सकेंगे। 'सर्वभूत मैत्री' की बात छूट जाएगी। मैत्री का अर्थ है कि हमारी ऐसी अनुभूति जो कि जहां पक्ष और प्रतिपक्ष हो, विरोध हो, भिन्नता हो, वहां भी शत्रुता न हो। यह अनुभूति जब पुष्ट होती है तब उसे मैत्री कहते हैं। यह मैत्री सीमित नहीं, असीम होती है। यह मैत्री सबके साथ हो सकती है। न केवल प्राणियों के साथ किन्तु पदार्थ के साथ भी यह मैत्री हो सकती है। राजनीति की मान्यता है कि जनतंत्र सफल तभी हो सकता है जब सत्तारूढ़ दल के साथ विरोधी दल का अस्तित्व भी हो। अन्यथा जनतंत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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