SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सत्य को स्वयं खोजें १८७ गरम । क्या दोनों प्रतिपक्ष नहीं हैं ? प्रतिपक्ष हैं, किन्तु दोनों में कोई शत्रुता नहीं है। यदि दोनों में शत्रता आ जाए तो जीवन चल नहीं सकता। प्रतिपक्ष होना, विरोधी होना, दो दिशाओं में रहना, भिन्नता रखना-यह शत्रुता का आधार नहीं है। पक्ष और प्रतिपक्ष-दोनों एक-दूसरे के आधार पर टिके हुए हैं। एक का अस्तित्व दूसरे के आधार पर है। हमने अपनी भ्रान्ति के कारण, झूठी मान्यताओं और धारणाओं के कारण, भिन्नता रखने वाले को शत्रु मान लिया और समानता रखने वाले को मित्र मान लिया। हम समवृत्ति-श्वास का प्रयोग कर रहे हैं । यह जाने-अनजाने मैत्री का प्रयोग है । हम मैत्री का प्रयोग कर रहे हैं। हम इस बात का प्रयोग कर रहे हैं कि जो ठंडा है वह भी आवश्यक है और जो गरम है वह भी आवश्यक है। दोनों आवश्यक हैं । दोनों में कोई शत्रुता नहीं है। दोनों भिन्न हैं, पर परस्पर शत्रु नहीं हैं। दोनों उपयोगी हैं। हमारे जीवन के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं। जब गरमी का अनुभव हो तब दाएं स्वर को बंद कर, बाएं स्वर को चलाएं, ठंडक का अनुभव होगा। जब ठंडक का अनुभव हो तब बाएं स्वर को बंद कर, दाएं स्वर को चलाएं, गरमी का अनुभव होगा। स्वर-शास्त्र में इस विषय की लंबी चर्चा प्राप्त है। एक स्वर सौम्य है, एक स्वर उत्तेजक है । चन्द्र स्वर सौम्य है और सूर्य स्वर उत्तेजक । जब शांत या अहिंसक काम करने होते हैं तब सौम्य स्वर कार्यकारी होता है। जब क्रूर या उत्तेजक काम करने होते हैं तब उत्तेजक स्वर कार्यकारी होता है । दोनों प्राण-प्रवाहों का कार्य भिन्न-भिन्न है। दोनों प्राण-प्रवाह हमारी उपयोगिता में आ रहे हैं और हमारे जीवन को उपयोगी बना रहे हैं। दोनों में कहां है शत्रुता? योगशास्त्र की दृष्टि से इनमें भेद है, पर शत्रुता नहीं। पदार्थ विज्ञान की दृष्टि से हम देखें। जैन दर्शन के अनुसार पुद्गल में चार स्पर्श होते हैं । शीत, उष्ण, रूक्ष और स्निग्ध-ये चार मूल स्पर्श हैं। ये प्रत्येक पुद्गल में प्राप्त हैं । ये चारों हैं तभी पुद्गल-स्कंध हमारे उपयोगी होता है। शीत और उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष-ये विरोधी हैं, पर इनका सह-अवस्थान है । दुनिया में सब कुछ युगल है, जोड़ा है। युगल के बिना सृष्टि ही नहीं हो सकती। युगल का मतलब है-पक्ष और प्रतिपक्ष । विद्युत् का भी एक युगल है। एक विद्युत् है-पोजिटिव और एक विद्युत् है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy