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________________ शक्ति-जागरण मूल्य और प्रयोजन बीमारियां बाहर आती हैं और उनका अनुभव होने लगता है। बीमारियां थीं, वे सुप्त पड़ी थीं। शक्ति का थोड़ा-सा विस्फोट हुआ, ध्यान-साधना के द्वारा शक्ति का कुछ जागरण हुआ और बीमारियों का अनुभव होने लगा । साधक को लगता है कि ये बीमारियां, पीड़ाएं और व्यथाएं ध्यान से उद्भूत हैं । नहीं, ये तो शरीर के तह में पहले से ही मौजूद थीं, आज उनका उभारमात्र हुआ है । शक्ति के जागरण को संभालना भी बहुत कठिन होता है। एक साधक मेरे पास आया। उसने कहा-"मैंने आपकी कुछेक पुस्तकें पढ़ीं। ध्यान प्रारंभ किया। जाप करने लगा । एक दिन में १५-१५ हजार जाप करने प्रारंभ किए । प्रारंभ में कुछेक कठिनाइयों से गुजरना पड़ा। मस्तिष्क पागल-सा लगने लगा। कुछ समय बीता। अब ऐसी स्थिति बन गई है कि ध्यान और जाप करने से अपूर्व आनन्द आता है, इसलिए उसे किए बिना भी नहीं रहा जाता और करता हूं तो कभी-कभी इतनी भयंकर स्थिति बन जाती है कि उसे संभाल पाना भी कठिन होता हैं। कभी-कभी पागल-सा हो जाता हूं। जब शक्ति जागती है तब अघटित घटनाएं घटित होती हैं और कभी-कभी दुर्घटना भी घटित हो जाती है।" शक्ति को जगाना, शक्ति को संभालना और शक्ति का सही उपयोग करना-इन तीनों आयामों से हमें सोचना होगा। __ सबसे पहले हम शक्ति को जगाएं । शक्ति की जागति किसी अनुभवी साधक की देख-रेख में करनी चाहिए । अन्यथा जो सोई हुई शक्ति जागती है तो वह उस सांप की भांति फुफकारती है जिस सांप पर किसी का पैर पड़ गया हो । मनुष्य घबरा जाता है । वह न शक्ति को संभाल पाता है और न अपने-आपको ही संभाल पाता है । वह दुविधा में डूब जाता है । यदि कोई सही मार्ग-दर्शन होता है तो वह इस स्थिति को संभाल लेता है, अन्यथा दुर्घघना घटित हो जाती है। दूसरी बात है-शक्ति को संभालना । शक्ति को संभालने में साधक सक्षम हो । समय-समय पर वह अपनी साधना में हेर-फेर करे और उस शक्ति को संजोने में प्रयत्नशील रहे । तीसरी बात है-शक्ति का सही उपयोग । जब शक्तियां जागती हैं तब अनेक उपलब्धियां होती हैं। कभी-कभी साधक इन उपलब्धियों में “भटक जाता है । वह चमत्कार के चकाचौंध में अपनी साधना को विस्मृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003132
Book TitleKisne Kaha Man Chanchal Hain
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1985
Total Pages342
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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